गादह ही जव चरै, दूध तोही भोग लागै।

त्रंबा सुत अचर चरै तदपि पावन लागै।

छापा दीयै चंडाळ, तोही पग खोळे नव पीजै।

त्रिया रहित द्विज मिल्या तेन आभोष लीजै।

किंकरै री हत जोअत भली, तोही अपावन खोळियो।

उदैराज तेण गीता बिचै कुळ जनम मांगे लीयो॥

स्रोत
  • पोथी : उदैराज बावनी (परंपरा भाग- 81) ,
  • सिरजक : उदैराज ,
  • संपादक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी,जोधपुर।
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