एकणि तो ऊपरै, पंच दुरजण छळ मंडै।

वप तरुवर करवते, सास झुसस विहंडै।

जरा संकट आवीयौ, पाउ जमराउ कूंडाळै।

आउ दिन दिन ओछीयै, हुई वाहर देठाळै।

विष कुंड पाप माया विटंब, विकल मोह मच्छर वरजि।

भूलवण अलप मन छांडि भ्रम, भव समारि भगवंत भजि॥

स्रोत
  • पोथी : सिद्ध अलूनाथ कविया ,
  • संपादक : फतहसिंह मानव ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकेदमी ,
  • संस्करण : प्रथम
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