ऋद्धि विण माणस किसो हीय विण श्रीय आपावै।

श्री विण जायै अकाज विण अरथ आवै।

अरथ पखै आदमी कहो सोई केथो कीजै।

तिण हूंति काष्ट कांटो भलो, जीय करि खेत्र रखीजै।

उदैराज जनम उण आदमी, इळा भार मारण लीयो।

चालती छाप चेतन सहित, धिग तास लहि जीवीयो॥

स्रोत
  • पोथी : उदैराज बावनी (परंपरा भाग- 81) ,
  • सिरजक : उदैराज ,
  • संपादक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी,जोधपुर।
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