करे कमळ काळकूट जहर जीरीयो जटाधर।

तदप नीत राजयट धर्यो, उतबंग निसाकर।

दवानळ वसि करे भाळ चख धर्यो विचाळै।

तदपि जटा विच गंग कन्ह लेहुं अलग टाळै।

सबंरारि बाळि भसमर क्यों, तदप गवर पासल रहै।

करि जाणजै नहीं अरि दूबलो सूर चंद्र ऊदो कहै॥

स्रोत
  • पोथी : उदैराज बावनी (परंपरा भाग- 81) ,
  • सिरजक : उदैराज ,
  • संपादक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी,जोधपुर।
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