रवि सस सोम समेत, जोत नभ मंडळ जांणै।
सबद अनहद सुणै, प्रीत सूं हंस पिछांणै।
जैसी मंशा जपै, पुहुमि तैसो फळ पावै।
साजोती सामीप, रूप सालोक समावै।
ब्रह्मंण बयण नवै द्रववती, साख वेद संमृति सही।
अह जनम ‘अलू’ प्रभु आरती, निरखै सो नही॥