नलणि नीर आणंद, गंग सांतोष तरोवर।
कमला कर राजीव, सदा परसंत मनोहर।
‘अलू’ सुजस उचरै, वेय पंचम सुंदर वर।
उर अंतर दिगपाळ, तजैं नह भजै निरंतर।
सिव हंस संत जळधर सदा, मीन बंध अहिराउ तहाँ।
चलि चरण सरोवर चक्कई, प्रेम न अंत भवंत जहाँ॥