काल कुठारा जग बनी, बचे गुप्ता जन चन्दण।

छिपे सिंह बन बीच, बड़े पशवादिक बंधण॥

छिपे पनंग मणी काज, नाज गुप्ता धर बावे।

समस्या पुरूषा सेन, सुन्दरी गर्भ दुरावे॥

गुप्त भजन गम्भीर सर, रत्ना रास बिरोलियों

जन सुखिया जन जोहरी, हर हीरा मन पोलिये॥

स्रोत
  • पोथी : संत सुखरामदास ,
  • सिरजक : संत सुखरामदास ,
  • संपादक : डॉ. वीणा जाजड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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