भंवर भ्रमैं ऊजळो, हंस में काळो दिट्ठो।

पाणी मरै पियास, पवन तप करै पयट्ठो।

अन्न क्षुधा दूबळो, जड्ड भर कप्पड़ कंप्पै।

तिरिया रोवत देख, थान दे बाळक थप्पै।

अलूणो लूण दीठौ ‘अलू’, घी लूखो पाहन सरस।

नवनाथ सिद्ध पूछै नरां, जोग श्रृंगार वीर रस॥

स्रोत
  • पोथी : सिद्ध अलूनाथ कविया ,
  • संपादक : फतहसिंह मानव ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकेदमी ,
  • संस्करण : प्रथम
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