हहो करै हित हाण, झझो तन व्याध जगावै।

धधो राज भय धरै, ररो धन नास करावै।

घघो घरण घट घाट न्रफल नर नो निमाड़ै।

खय जस करैं खकार, भभो परदेश भ्रमाड़ै।

अंक आठ कहिया अशुभ, चित्त धुर-धुरो विचार।

अवध ईश गुण गावतां, लगै दोष लगार॥

स्रोत
  • पोथी : रघुनाथरूपक गीतांरो ,
  • सिरजक : मंसाराम सेवग ,
  • संपादक : चन्द्रदान चारण ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम