स्वस्ति श्री दिल्लीपुर सुथान। सल्तनत मुगल कुल सावधान॥
दरगाह सदर दौलत दराज। ताला बुलंद इस्लाम ताज॥
आदाबअ़र्ज्ज उम्मेदवार। परवरिश करहु परवरदिगार॥
बंदगी करैंगे महरबान। ज़िंदगी बकस किबले-जिहान॥
हुक्काम हुकम हाजिर हजूर। करियो न तदारुक बेकसूर॥
देखिये दर्द हम बेगुनाह। पेखिये बिरद आलम-पनाह॥
खाँविंद चहत खुद ख़लक ख़ैर। गफ्फूर ग़ैर इन्साफ़ गैर॥
मालिक नहिं खालिक मुसलमीन। अल्ला हैं रब्बल आलमीन॥
काबिल कलाम कहियत करीम। रहमान इल्म रय्यत रहीम॥
खातरी नजर धर करहु खोज। हम हैं न सजा लायक हनोज॥
जल्लाल जुल्म इजहार जाब। होयगो क़यामत में हिसाब॥
बद सदी बदी नेकी निहार। देखेंगे दोजख बस्ति द्वार॥
तौहीन अदालत अल-कितीक। लिल्ला वजूद हैं लाशरीक॥
मालुम मुलायजे करहु माफ़। आलिम हैं आलमगीर आप॥
ऊगौ दिन अन्धाधुन्ध आक। किहँ ताकरु धर दक्खे कज़ाक॥
अहदी डेरिन पै अधम आय। दुख देत खुदा खुद लगत दाव॥
द्रढ दंत दब्बि देखत दुसार। आवत न पार दुख सिंधु पार॥
आपकी इजाजत चहत अग्ग। मुरधरा जान को देहु मग्ग॥
सब अबलावों पै महर माफ़। खलजुल्म सरे तैं है ख़िलाफ़॥
जो हुक्म करहिं सिर धरहिं जोय। है हल्फ दोगलापन न होय॥
ठावे हम ठक्कुर सुकुल ठीक। नौकरी चहत नज़दीक नीक॥
सुभ स्वामिधर्म्म सेवक सुशील। अनुसरन असुर ईमान ईल॥
विलकुल विसारि वैदिक विधान। कब हू पढि हैं नहिं हम कुरान॥
कटि सिखासूत्र सुन्नत कराय। जावैं न मदीने प्रान जाय॥
जुम्मे मसजिद सामिल जमात। कमध्वज नहिं चाहत करामात॥
कल्मां नहिं भरिहँ पान कान। मारेहु न व्है हैं मुसल्मान॥
संध्योपासन तजि बाँग साज। निस दिवस वुज़ू रोज़ा निवाज़॥
सामर्त्थ सिंह हम नहिं शृगाल। गौ मांस नाम पै देत गाल॥
अल्लाह मुहम्मद सिर उठाय। मगरिब मक्के मन्नत मनाय॥
चच्चे मामूं की धि चकार। बिस्मल्ला करैं न बार बार॥
जसवंत जुवति चे जहहिं जीव। दहनोदय दहही प्रथक पीव॥
नश्चिन्त पतिव्रत लोक नेम। प्रत्येक करहिं परलोक प्रेम॥
हठ बादसाह तहिं परहिं हत्थ। मरुधराधीस रनवास मत्थ॥
सो असंभावना है समत्थ। बद कांड भरत ब्रह्मांड बत्थ॥
कुल-नासकरन कुल कुल-कुठार।क्यूं कमलन बन दै दहनकार॥
पोमावत खर पर पार पंखि। निरमल जल में छल छार नंखि॥
जसवंत जमी काबुल जबून। खत्री कुल गारति करत खून॥
नाम्बरी नियत हम जियत नाहिं। आकास न आवहिं मुट्टि मांहि॥
हैं हिरस जोधपुर हरन हाल। खालसो करन खाली खयाल॥
किल मारवारि बस करहिं कोय। हम हंस-बंस निरबंस होय॥
सुरतान गृहन मोखन सुजान। हिंदवान भान की करन हान॥
गल फेरि छुरी जैचंद गोत। अप्पनूं पोत करियें उदोत॥
सीहा के कुल संभव सदीव। जीवका हेत हसि देत जीव॥
उर मंडोवर तब करहु आस। निज सीह मूल निर्मूल नास॥
पन प्रबल पिसन पिक्खै न पिठ्ठ। रजबट बटदै रट्ठोर रिट्ठ॥
द्रुत मरुधन्वा लीजैं दबाय। जब राज बीज निर्बीज जाय॥
कर में नहिं चूरी करन कानि। पगहैं न पगरखी धरन पानि॥
करबाल ढाल दिस कर कयास। ओलंदेहैं नहिं अनायास॥
मन भ्रमर मनोरथ विरथ मोज। चंपक वत चांपावत सचोज॥
जैतावत दैंगे जुद्ध झाट। कूंपावत नवकोटी कपाट॥
करनोत कुतूहल करत कोड। व्है गोयंदासोतां न होड॥
आहव उछाह उर अधिक ऊह। दूदावत मेड़तिया दुरूह॥
निज कर्मसोत पैंडेंन बीह। उदावत अैंडैंगे अबीह॥
उछरंग अंग रिड़मल अभंग। जोधाहर नाहर रूप जंग॥
अट्ठों दिकपालन सम असंक। निरखियें अट्ठ मिसलन निसंक॥
ईसाज्ञाबर्ती अचल अग्घ। मारवा राव मुरधर महग्घ॥
ढब्बन भट भूमी बनत ढाल। करवाल शत्रु काटन कराल॥
स्वामी संसद सुबरन समान। जालमन कोह पे लोह जान॥
चित उज्ज्वल संदल मलय चूर। कंटक हित कंटक तरु करूर॥
तन त्रसित घ्राण मृगमद त्रसींग। हठ अरिन अमल व्है जात हींग॥
धुर धरम धारणा नीरधार। दुसमन दल दावानल दुधार॥
गुनिजन गरीब हैं अति गरीब। जबरन की अँचत अपरि जीव॥
बंदगी बैर भरि देत बोट। परमेसुर पै नहिं धरत पोट॥
आसार दान दातार अस्त्र। सब महा सूम सूंपन स्वसस्त्र॥
बैरी तरवर हमहैं बयार। तारुन्य तरुन तत्पर तयार॥
पावहु पवित्र प्रहरन प्रसाद। पीहुख प्रयान पक्खर प्रनाद॥
सन्निद्धि सुभट समरन समीक। इक्क तैं इक्क उद्धत अनीक॥
दुर्योधनपुर देसक दरोल। हैं दुर्ग्गदास बेसक हरोल॥
प्रारब्ध प्रतिज्ञा दृढ़ प्रतीत। पुरुषारथ प्रज्ञा परम प्रीत॥
रनबंका ध्वज धज धुर रहंत। हैं कौन हूस रट्ठोर हंत॥
सूरज की बीरत बरन साख। जुलमीं की चीरत हम जनाख॥
हह सानसाह किन घूक होय। दुष्टी के करदें टूक दोय॥
मुल्ला काजी मंगहु मयाद। फतवा लीजै मेटन फसाद॥
सबकी हैं मालेकम सलाम। अब जल्दी कीजै कतल आम॥
साफल्य स्वप्न संपति समान। पानी मंथन में घृत प्रमान॥
चांचल्य चित्त सिद्धांत चूक। सब सेखसली के हैं सलूक॥
नहिं बहुत बोलबो सुभट नीत। प्रत्यूह भविष्यत ह्वै प्रतीत॥
यह दुर्गदास अक्खत अडोल। बलि विपद डिगहिं नहिं डगहिं बोल॥
इक रक्खोगे मुख बचन याद। सब चक्खोगे सनमुख सवाद॥
सिर कूटोगे फिर सुबह साम। तोबा कर छूटोगे तमाम॥
मिरजा दधि मथिहौं समर माट। नवरंग रंग जैहें निराट॥
विक्रय करि निद्रा व्यसन वाम। क्रिय करत उजागर कवन काम॥
प्राणान्त पहुमि परिणामयस्य। रट्ठोर सकल सम्बत रहस्य॥
हस्ताक्षर हेरहू हिय हुलास। दुर्द्धर दुरूहरू दुर्गदास॥
इत्यादि युक्तियुत वच उदार। सरकार श्रवन भेजे सु ढार॥
पय धान कर्न पौरष प्रकास। पहुँच्यो दल औरँगजेब पास॥
यह पत्र बिचित्रित चित्र योग्य। आरण्य-रुदन वत भो अयोग्य॥
प्रिय जाट पुत्रि वत प्रश्नपेस। पितु कति पपीलिका बिल प्रवेश॥
स्वछन्द कियो निज काम सोर। उड़ि गयो चन्द्र की बाम ओर॥
उपमा कवि ऊमर दै अमोल। ततकाल समय टंकार तोल॥