सइसव तनि सुसुपति, जोवण जाग्रति,

वैस-संधि सुहिणा सु वरि।

हिव पळ-पळ चढतउ-जि होइस्यइ,

प्रथम ग्यान अेहवी परि॥

पहिलउं मुखि राग प्रगट थिउ, प्राची,

अरुण कि अरुणोदय अंबर।

पेखे किरि जागिया पयोहर,

संझा-वंदण रिखेसर॥

जंप जीव नहीं, आवंतउ जाणे,

जोवण जावणहार जण।

बहु बिळखी वीछड़तइ बाळा,

बाळ-संघाती बाळपण॥

आगळि पित-मात रमंती आंगणि,

काम-विराम छिपाड़ण काज।

लाजवती-अंगि अेह लाज विधि,

लाज करंति आवंइ लाज॥

सइसव सु-जु सिसिर वितीत थयउ सहु,

गुण गति मति अति अेह गिणि।

आप तणउ परिग्रह ले आयउ,

तरुणापउ-रितुराउ तिणि॥

दळ फूलि विमळ वण, नयण कमळ-दळ,

कोकिळ कंठ सुहाइ सर।

पांपणि-पंख संवारि नवी परि,

भ्रूंहारे भ्रमिया भ्रमर॥

मळयाचळ सु-तनु, मळय मन मउरे,

कळी कि काम अंकूर कुच।

तणउ दखिण-दिसि दखिण त्रिगुण मइ,

ऊरध सास समीर उच॥

आणंद सु-जु उदउ, उहास हास, अति

राजति रद रिख-पंति रुख।

नयण कमोदणि, दीप नासिका,

मेन केस राकेस मुख॥

वधिया तन-सरवरि वैसि वधंती,

जोवण तणउ, तणउ जळ, जोर।

कामणि-करग सु वाण काम-रा,

दोर सु वरुण तणा किरि दोर॥

कामणि-कुच कठिण कपोळ करी किरि,

वैस नवी विधि वाणि वखाणि।

अति स्यामता विराजति ऊपरि,

जोवणि दाण दिखाळिया जाणि॥

धर-धर स्रिंग सधर सु-पीन पयोधर,

घणूं खीण कटि अति सु-घट।

पदमणि-नाभि प्रियाग तणी परि,

त्रि-वळि त्रि-वेणी, स्रोणि तट॥

नीतंबणि-जंघ सु करभ निरुपम,

रंभ-खंभ विपरीत-रुख।

जुअळि नाळि तसु गरभ जेहवी,

वयणे वाखाणइ विदुख॥

ऊपरि पद-पलव पुनरभव ओपति,

न्रिमळ कमळ-दळ ऊपरि नीर।

तेज कि रतन कि तार कि तारा,

हरि हंस-सावक सस-हर हीर ?

स्रोत
  • पोथी : क्रिसन-रुकमणी-री वेलि ,
  • सिरजक : पृथ्वीराज राठौड़ ,
  • संपादक : नरोतमदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : श्रीराम मेहरा एंड कंपनी, आगरा (उ.प्र.) ,
  • संस्करण : द्वितीय
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