दूहा
कर इबडौ लीधौ सकहि, खुहणि धरणिधर खप्प।
भुयण घड़ंतै भांज़तै, केताइ गया कळप्प॥1॥
घड़ भंजै भांजै घड़ै, चत्रभुज खांणि चियार।
मिळियौ माल स दाख मूं , भूधर तूझ भंडार॥2॥
कारण जिण विस्सव कियौ, मुझ स दाखि मरम्म।
जुग सह दीसैं जावतौ, वळत न दीसैं व्रम्म॥3॥
कोटि-कोटि ब्रहमंड किया, गढ़ गिरि सायर ग्रांम।
एकै पग नां ऊभिवा, थारै नांही ठांम॥4॥
छन्द बेअखरी
फूंक मेट धर अंबर फोड़ै। कळप तरू जेहड़ा व्रिख मोड़ै।
पांचे परपंच परा पळेटै। सहि बाजी पाछी सामेटै॥
अजराइल सरिखा ऊधेड़ै। विसन पछै केहा फळ वेड़ै।
मांणस देव नाग सहि मारै। एक आपरी जोति उबारे ॥