छंद बिहुणी

नितका
दे जावै चन्दरमा
मोरी सूं (झांकी सूं)
झालो...
मीठा सुपना रो।
हिंडावै (झुलावै) हिंडो (झुलणों) चांदणी…
सीळी सीळी भाळ रै साथै।
कर लैऊं भेळी,
लाड-कोड री,
मनभावणी कतरना।
अंवैरूं...
जी जान सूं...
अणूठी अणमावती परीत नै।
पूरा चित सूं....
पूरी हूबा तक
कर बंद आंख्या...
उतारूं पलका पाट...
अर लगाऊं काळजै
बीं घड़ी रा सुकून नै
कदै कदै
ईंया भी जी लेऊं।
मैं लुगाई...।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : मीनाक्षी पारीक ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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