(जनक छंद)

नारी री पूजा जठै
सगळा देवी-देवता
खुसी-खुसी रमता बठै।

रमा-शमा-सी नित जळै
नारी घर री रोसनी
फूल प्रीत रै हित पळै।

नदियां जेङी नारियां
मैलो जग रो ढ़ोंवती
सेवा मेवा धारियां।

दया-मया री खैण अै
गंगा करूणा री बगै
जती सती रा नैण अै।

आंचल मां रो रस भर्‌यो
मीठी थपकी नींद री
बात-बात में कस झर्‌यो।

पूत बाळतो आग सी
मायङ बरगद छांव-सी
हियो महकतो बाग-सो।

मां विदुला फटकारती
संजय उठतो सेज सूं
असि अरि नै ललकारती।

सीस काटके दे दियो
हाङी राणी सिंहणी
रतन जीत रो ले लियो।

इन्द्रा मूरत त्याग री
कतरो-कतरो खून रो
शोभा बणगी बाग री।

सुभद्रा बीजळ बादळी
यशोधरा कविता रचै
गज़लां घङती नाजली।

गंगा गीता गोरियां
नाच नचावै किसन नै
छाछ पिलावै छोरियां।

मीरा विष नै पी गई
पति मान्यो गोविंद नै
अमर जगत में बा भई।

मार भजायो काम नै
रतनावलि निज बैण सूं
तुलसी भजता राम नै।

कस सतावै आ बी
रोंती कळपै देवकी
सोयो कळजुग राजवी।

किरण बेदी मयंक सी
डोळ सुघार्‌यो पुलिस रो
राजनीत में कंक सी।

अमर लता सी संगीत री
मंगेशकर-सी कोकीला
बाणी-बीणा जीत री।

पकङै उङतै बाज नै
सैर सुनीता इब करै
ओढ़ै नभ रै ताज नै।

लगन मलाला री फळी
गोळी हारी कंस री
महकै चम्पा-सी कळी।

आस पाळती मेल में
सायना नेहवाल-सी
नाम कमावै खल में।

जया किशोरी गांवती
नानी बाई मायरो
छवि छलियै री भांवती।

राधा पाळै कर्ण नै
रितम्भरा सन्यासिणी
देखै कोनी वर्ण नै।

माय सिखावै पूत नै
जीवण मरण री कळा
बटती काचै सूत नै।

राजै इब तो नारियां
मंतरियां री सीट पर
बुझी बिपद चिनगारियां।

मंदाकिनी नित गांवती
अनसूइया रै नांव नै
महमा तप री भांवती।

राखी मरतै जीव री
नदी दया री मेनका
धुरी धरम री नींव री।

सौरम कण-कण में भरै
वृन्दा चन्दण चांदणी
हरो थार नै बै ही करै।

संसकार मां देंवती
लाली दमकै लाल री
किसती घर री खेंवती।

काज गजब रा राज रा
पूत जनमती भरत सो
दांत गिणै वनराज रा।

पाटी बांधै चोट पर
लोरी गावै रात नै
ध्यान धरै खोट पर।

मां जसुमती ललकारती
माटी खावै भाजके
नटखट नै पुचकारती।

दो दो कुल बै तारती
राधा सीता भारती
देव उतारै आरती।

अंरुधती आकास में
चमचम चमकै तारीका
बसिष्ठ मुनि रै पास में।

धन-धन सत री शान नै
ले आई जमलोक सूं
सावित्री सत्यवान नै।

अंजनी भरसी वीरता
पाळै बाल मदालसा
कुंती धारै धीरता।

अगन-परख नित देंवती
सीता इण संसार में
नाव सांच री खेंवती।

बीणा सुरसत बाजती
खेत-खेत री रोसनी
ऊंचै आसन राजती।

लूलां री बैसाखियां
टेरेसा-सी मां अठै
बूरै बिसली बांबिया।
गळै लगावै प्यार सूं
जद-जद बाळो चीखतो
मां पोषै पयधार सूं।

गया नरक में खाणिया
बळगी जौहर ज्वाळ में
सत्ती राजपूताणियां।

पन्ना वारो पूत नै
मोल चुकायो लूण रो
नरक दिखायो ऊत नै।

शिवा बिना शंकर जियां
धणी अधूरो धण बिना
बंस-बेल बधसी कियां।

नारी मूरत त्याग री
रास रचावै राधिका
किळकै कोयल बाग री।
स्रोत
  • पोथी : बिणजारो 2016 ,
  • सिरजक : मुखराम माकङ ‘माहिर’ ,
  • संपादक : नागराज शर्मा ,
  • प्रकाशक : बिणजारो प्रकाशन पिलानी
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