वैताळ छंद

व्रिख व्रिक्ख नीचे नाद वाजै, करै मुनिवर केळ।
जळे मोती थळें हीरा, वन्न वन आहिवे।
आठार भार नीलाइ अदभुत, थळे अंबा थाइ।
सारदा गंगा सती सीता, गुणे गरुवो गाइ।
जव चिणा गोहूं साळि साकर नीपजै नव नेह।
पग-पग्ग सरवर प्रघळ पाणी, आगे जाइगा एह॥
स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : ईसरदास बारहठ ,
  • संपादक : चन्द्रदान चारण ,
  • प्रकाशक : राजस्थान भासा साहित्य संगम (अकादमी), बीकानेर (राजस्थान) ,
  • संस्करण : तृतीय
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