दोहा

जग भाळण नित जोगणी, मग्ग बता महमाय।
पग पग तोप परवाड़ा, रग्ग बसो रिधुराप॥

भगत काज हित भगवती, सगत रखो नित साथ।
जगत शिरोमण जौमणी, मदद रहे जग मात॥

काज सुधारण कारणै, आज पधारो अंब।
साज सवारी शेर री, लाज रखो भुजलंब॥

छंद मतगयंद

आवड़ वास कियो इल ऊपर चारण वंशन तूं चिरताळी।
मास असोज उजास मरूधर मेह घरां जिनमी ममताळी।
रूप अनूप धरी करणी तुम छीतर भोम रमी रुदराळी।
कान सुणो झट साद करन्नल केहर तेज खड़ो किरपाळी॥

जाळ तणी तुम झूलत जोगण बाळ पणै रिधु मां बिरदाळी।
भात पिता हित मात लिजावत सेन जिमावत बीस भुजाळी।
साल पचीस बिताय सुआप थरा सज ताप अखंड धजाळी।
कान सुणो झट साद करन्नल केहर तेज खड़ो किरपाळी॥

कोपित होय लियो भख कानन बब्बर रूप बणी विकराळी।
राव रिड़म्मल राज दिरावण ओरण जांगळ तूं रणवाळी।
धेन चरावत मात धजाबंद बारह कोस धरावण वाळी।
कान सुणो झट साद करन्नल केहर तेज खड़ो किरपाळी॥

पूत बचावण घोक करी जमलोक भिड़ी जद मां जमराळी।
लाय दियो झट अंगज लाखण दे वरदान जिवाय दयाळी।
सात पुरी सुर लोक शिरोमण धाम बसावत धाबळवाळी।
कान सुणो झट साद करन्नल केहर तेज खड़ो किरपाळी॥

खग्ग रूपे उड़ डग्ग पसारण मग्ग बतावण मां खिरजाळी।
जग्ग बसावण जोगमया मुझ रग्ग बसो नित पात रुखाळी।
आ अरजी कुलदीप अखे अब हिंय उजास करो उजियाळी।
कान सुणो झट साद करन्नल केहर तेज खड़ो किरपाळी॥

छप्पय

अंब सुणो अरदास, आस रखूं तब ईसरी।
सिमरत हूं हर सांस, पास रहे परमेशरी॥
करण मदद किरपाळ, शरण रखे नित सांवरी।
बीसहधी बिरदाळ, पाळ छांव तो पांवरी॥
करबद्ध दाखे विदग कुळियो, मति शुद्ध करे ममताळी।
कलम शरम मेरो धरम करम, पांव तळे तुझ प्रचाळी॥
स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां रचियोड़ी ,
  • सिरजक : सुआसेवक कुलदीप चारण
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