वावि कूप नें कुंड तळाव,
उदक तणो न हुवै अणराव।
घृत कण सुं भरियो कोठार,
भरिया धन अंबर भंडार॥
दुर्ग में कुएँ, बावड़ियों, कुंडों ओर तालाबों के आधिक्य के कारण पानी का अभाव कभी नहीं रहता। यहाँ के कोठार(भंडार) अन्न और धृत आदि पदार्थों से भरे पूरे हैं, तथा भंडारों में प्रभूत मात्रा में धन-संपत्ति और वस्त्रादिक भरे हुए हैं।