दीसें ऊंचा बहु देहरा,
जाणें कि गिर बांध्या सेवरा।
दंड कलश धुज लहकें सदा,
वीर-घंट लहकंती मुदा॥
अति-उतुंग देवालय ऐसे दिखाई देते हैं, मानों पर्वतों ने सेहरे(मुकुट) धारण कर रखे हों। इन देवालयों के शीर्षभाग(कलश) पर स्थित ध्वजदंडों पर सदैव ध्वजाएं फहराती रहती हैं और बड़े-बड़े घंटे हर्ष के साथ झूलते रहते है।