कब से भये असे तम ज्ञानी

नांव प्रीत हृदै में जानी।

ऐसी सीख कहां तम पाई

सो प्रहलाद कहो समझाई॥

हे प्रहलाद! तुम कब से इतने ज्ञानी हो गये? हरि नाम की प्रीत हृदय में धारण कर ली , ऐसी अद्भुत शिक्षा तुमने किससे प्राप्त की ? यह आप हमें समझाकर बताए।

स्रोत
  • पोथी : ऊदोजी अड़ींग की बाणी ,
  • सिरजक : ऊदोजी अड़ींग ,
  • संपादक : आचार्य कृष्णानंद ,
  • प्रकाशक : जांभाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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