गोरखनाथ ग्यांन यह दीन्हो,

जन हरीदास हिरदै धरि लीनों।

आन भरम सब दियो उठाई,

देव निरंजन सूं ल्यो लाई॥

स्रोत
  • पोथी : श्री महाराज हरिदासजी की वाणी सटिप्पणी (हरीदास की परचई) ,
  • सिरजक : स्वामी रुघनाथदास ,
  • संपादक : मंगलदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : निखिल भारतीय निरंजनी महासभा,दादू महाविद्यालय मोती डूंगरी रोड़, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम