नारद तुमर वीन बजावै, लैला न भए विस्नु गुन गावै।
नव जोगेस्वर गियान विचारै, विस्नु चरित हृदय में धारै॥
नारद मुनि तुंबल, तंबूरातथा वीण तथा बंसी बजाते हैं और भगवान की लीला में लैलान-मस्त रहते हैं। हरि का गुणगान करते हैं। नौ योगेश्वर हरि के बारे में विचार करते हैं। विष्णु का चरित्र हृदय में धारण भी करते हैं।