जां अंबर पुड़ तळि तरणि रमइ,

तां कमधज कंध धगड़ नमइ।

वरि वड़वानळ तण झाळ समइ,

पुण मेच्छ आपूं चास किमइ॥

पुणु (पुण) रणरस जाण जरद्द जड़ी,

गुण सींगणी खंची खंती चड़ी।

छत्तीस कुलह बल करिसि (सु) घणुं,

पय मग्गिसिरा हम्मीर हम्मीर तणुं॥

दळ दारुण दफ्फर खान जयी,

मिइं भग्गइ अग्गइ खग्ग रयि।

हिव पट्टण पध्दरि धरि सुपयं,

नइ विनड़िसु सत्तिरि सहस सयं॥

मिंइ संगरि समसुद्दीन नड़ी,

पड़ि भग्गउ अंगो अंगि भिड़ी।

जव मंडिसि मुझ रणमल्ल समं,

तव देखिसि लसकर सरिस जमं॥

मम मोड़िय मंडि मलिक्क घणुं,

हुं समरि विडारण मेच्छ तणुं।

जव उठिसि हठि हक्कंत रणि,

तब गणूं त्रण सुरताण तणि॥

बळ बुल्लिम वल्लि मलिक्क कहि,

मम वरणिसि मुण (ा) सिम दुत मुहि।

जब चंपिसि ईडर सहरि तळं,

तब पेक्खिसि मुह रणमल्ल बळं॥

हय हेडवि सवि हेजब्ब गया,

वहि वल्लि मलिक्क सलाम किया।

हिव करिसु धरा रणमल्लं मयं,

इम बोल्लइ हठि तोलंत हयं॥

नर केसरी ईडर सिहरि धणी,

जव हेजब मुहि फरियाद सुणी।

तव चमकि ढमक्कि मलिक्क करी,

धसि धाड़िइ धायउ धूंस धरी॥

जब तक गगनांगण में सूर्य क्रीड़ा करता रहेगा, तब तक इस रणमल्ल राठौर का शीश उस यवन के समक्ष नहीं झुकेगा। भले ही बड़वानल की लपटों का शमन हो जाय पर मैं किसी भी प्रकार से यवनों को पृथ्वी प्रदान नहीं करूंगा।

मैं कहता हूं कि- यदि युध्दोन्मत होकर क्षत्रिय वीरों ने कवच धारण कर लिए और उनके शृंगणी-धनुषों की प्रत्यंचाए चढ़ गई तो छत्तीस कुलों के क्षत्रिय अत्यधिक शक्ति लगा देंगे और वे यवनों को राव हम्मीर का क्षीर प्रदान करेंगे। अर्थात् जिस प्रकार राव हम्मीर ने यवन सैनिकों को मृत्यु के घाट उतार दिया था उसी प्रकार हमारे क्षत्रिय वीर भी यवनों को मृत्यु के घाट उतार देंगे।

विजयी दफ्फर खान के दारुण-दल को मैंने अपनी खड़्ग के सामने भगा दिया था। अब तुम देखना पाटण को नष्ट करके, उसके शासक को पकड़ कर तथा उसके सत्रह सहस्त्र सैनिकों को स्ववश कर लूंगा।

मैंने युध्द में शमशुद्दीन को स्ववश कर लिया था। वह मेरे साथ परस्पर युध्द में पराड़्मुख होकर भाग पड़ा था। जब खान मेरे समक्ष युध्द के लिए तत्पर होगा, तब उसकी सेना मुझे क्रुद्ध यमराज के समान देखेगी। अर्थात् यवन सैनिक मुझे देखकर भय-भीत हो जाएंगे।

मैंने युध्द-तत्पर अनेक मलिकों को परास्त किया है। मैं युध्द-स्थल में यवनों को तितर-बितर करने वाला हूँ। जब मैं युध्द के लिए सन्नध्द हो जाऊंगा तब (यह तो एक सुलतान है) मैं तीन-तीन सुलतानों की शक्ति को भी कुछ नहीं समझूंगा।

रणमल्ल ने पुनः इस प्रकार कहा- हे दुत! तुम अपने सरंक्षक मलिक से मेरा कथन उचित प्रकार वर्णन कर देना। साथ-साथ यह भी कह देना कि जब तुम ईडर की तलहट्टी को दबाओगे तब मुझ रणमल्ल के वास्तविक पराक्रम को देखोगे।

सभी दुत अपने घोड़ों कों ले कर चले गए। जाकर अपने संरक्षक मलिक को सलाम किया। तत्पश्चात् बोले खुदाबंद! रणमल्ल (तो) अपने घोड़े की जांच करता हुआ, इस प्रकार कह रहा था कि-अब (अतिशीघ्र ही) समग्र पृथ्वी को यवनों से मुक्त कर दूंगा। अर्थात् यवनों के शासन को समूल विनष्ट करके ही छोड़ूगा।

ईडरपति नरकेशरी (रणमल्ल) का कथन जब (मलिक ने) दुत के मुंह से सुना, तब वह अपने नक्कारों पर डंडा देकर ईडर प्रदेश में लूटने के लिए चल पड़ा।

स्रोत
  • पोथी : रणमल्ल छंद ,
  • सिरजक : श्रीधर व्यास ,
  • संपादक : मूलचंद ‘प्राणेश’ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर
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