
आक का झाड़ीनुमा पौधा पूरे राजस्थान में पाया जाता है। इसे राजस्थानी भाषा में ‘आकड़ौ’ कहा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम केलोट्रोपिस प्रोसेरा (Calotropis procera) वंश का नाम अैस्क्लपिएडेसी (Asclepiadaceae) है। आक को संस्कृत भाषा में ‘अर्क’ कहा जाता है।
आक का पौधा सूखे भू-भाग में उगता है। यह ऐसा पौधा है जो काफी वर्षों तक जीवित रहता है। इसकी अनेक शाखाएं होती हैं जो जमीन में से निकलती रहती हैं। इसकी ऊंचाई 2 से 3 मीटर तक होती है। आक की छाल कोमल होती है और शाखा पर आमने-सामने पत्ते लगते हैं। पत्तों का आकार दस से बीस सेंटीमीटर लंबाई और छ: से बारह सेंटीमीटर चौड़ाई लिए होता है। इनकी आकृति लंबी अंडाकार होती है।
आक पर सफेद और लाल-बैंगनी रंग के फूल लगते हैं। फूलों के परिपक्व होने के बाद इस पर फल लगते हैं जिनका आकार 5 से 7 सेंटीमीटर लंबा और 2 से 5 सेंटीमीटर चौड़ा होता है। इन फलों में भूरे रंग के बीज होते हैं जो बेहद हल्के होते हैं। इन बीजों के साथ रूई लगी होती है जिसके साथ ये बीज गर्मियों के समय इधर-उधर उड़ते रहते हैं।
आक का पौधा काफी उपयोगी होता है जिसका कई कामों में प्रयोग होता है। इसकी शाखाओं को सुखाकर रस्सी बनाने और चारपाई आदि बुनने में काम में लिया जाता है। आक के फल में से निकलने वाली रूई से तकिया और रजाई आदि भरे जाते हैं। इससे शाखाओं से निकलने वाले दूध और छाल से घरेलू औषधियां बनाई जाती हैं।