लोकजीवन में श्रम कार्य करते समय परिस्थितियों को हल्का-फुल्का बनाने के लिए अनेक प्रकार के तरीकों का प्रचलन रहा है। लोकगीतों का गायन भी इन्हीं तरीकों में से एक है। राजस्थान के लोग विपरीत प्राकृतिक परिस्थितयों के बीच श्रम करने के अभ्यस्त हैं और मौसम की प्रतिकूलता को झेलकर भी अपने कार्य सहजता से पूरे कर लेते हैं। इस कार्यक्षमता के मूल में यहां के लोकजीवन में पीढ़ियों से चली आ रही लोकानुरंजन की परंपरा का महत्वपूर्ण योगदान है। राजस्थान के लोक में कार्य करते समय गीत गाने का चलन है। इन गीतों को श्रम-गीत कहा जाता है। राजस्थानी लोकजीवन में समूह द्वारा गाए जाने वाले श्रम-गीतों को 'भणत' और 'राम-भणत' नामों से जाना जाता है। इन गीतों में वर्णन का विषय कार्य से संबंधित ही होता है। उदाहरणार्थ मानव-समूह द्वारा फसल की कटाई की जा रही है तो उस समय गाए जाने वाले श्रम-गीत में फसल कटाई का वर्णन किया जाता है। इन गीतों में श्रम के प्रति उत्साह का भाव और एक-दूसरे से अधिक कार्य करने की प्रतिस्पर्धा के दृश्य भी मिलते हैं।
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