रोहिड़े को राजस्थान का सागवान कहा जाता है। इसका वानस्पतिक नाम ‘टेकोमेला उण्डुलता’ (Tecomella undulata) है। शुष्क जलवायु का पेड़ होने के कारण रोहिड़ा राजस्थान में बहुतायत से पाया जाता है। इसके पुष्प को राजस्थान का राजकीय पुष्प घोषित किया गया है। रोहिड़े के पेड़ की ऊंचाई 4 से 7 मीटर तक होती है। इसका तना अमूमन टेढ़ा-मेढ़ा होता है। रोहिड़े की टहनियां नीचे की तरफ लटकती रहती हैं। इस पेड़ की पत्तियां बड़ी और लंबी होती है जिनका आकार अशोक के पेड़ की पत्तियों जैसा होता है। इन पत्तियों की लंबाई 6 इंच और चौड़ाई 2 इंच के लगभग होती है। ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत में इसकी अधिकांश पत्तियां झड़ जाती हैं।
रोहिड़ा राजस्थान की पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण पेड़ है। यह निम्नतम तापमान (लगभग -2°C) और उच्च तापमान (लगभग 50°C) दोनों को सहन कर सकता है। इसी खासियत के कारण रोहिड़े को ‘डेजर्ट टीक’ या ‘मारवाड़ टीक’ भी कहा जाता है। यह अपनी गुणवत्तायुक्त, मजबूत और टिकाऊ लकड़ी के लिए जाना जाता है। रेतीले धोरों के स्थिरीकरण के लिए यह वृक्ष बहुत उपयोगी है।
रोहिड़े पर वसंत ऋतु में पलाश जैसे फूल खिलते हैं। इन फूलों का रंग हल्के पीले से लेकर गहरा नारंगी होता है। रोहिड़े के फूल बेहद खूबसूरत होते हैं पर ये सुगंधरहित होते हैं। इन्हीं फूलों के आधार पर राजस्थानी लोक में बनावटी आचरण करने वाले लोगों को कहावत के रूप में ‘रोहिड़ै रा फूल’ (गुणहीन) कहकर प्रहसन किया जाता है। रोहिड़े के फूल तुरही के समान होते हैं जिनसे पक्षी दो प्रकार से मकरंद निकालते हैं - या तो फूलों के भीतर अपना सिर डालकर या फिर परागण में सहायता किये बिना सीधे फूलों के आधार पर अपनी चोंच से चोट मारकर छिद्र बनाते हुए। पक्षियों के इस व्यवहार को ‘मकरंद चोरी’ भी कहा जाता है। इस विधि में पक्षी फूलों के पराग के संपर्क में आए बिना मकरंद निकालते हैं।
रोहिङे की उपयोगितारोहिड़ा इमारती लकड़ी उत्पादित करने वाला वृक्ष है जिसकी लकड़ी मजबूत और टिकाऊ होती है। इसकी लकड़ी भारी होने के कारण फर्नीचर और दरवाजे आदि बनाने के लिए बहुत उपयुक्त होती है। इसकी उपयोगिता को देखते हुए इसे ‘राजस्थान का सागवान’ या ‘मारवाड़ का सागवान’ कहा जाता है। इमारती पेड़ होने के कारण इसकी महत्ता सागवान के बराबर मानी जाती है। रोहिड़े के परिपक्व तने का व्यास 2-3 फीट का होता है, जिसकी लकड़ी से मजबूत खिड़की और दरवाजों का निर्माण संभव है। इसकी जड़ें फर्नीचर बनाने के लिए उपयुक्त होती हैं। रोहिड़े की लकड़ी में तैलीयता अधिक होती है जिससे फर्नीचर में चमक और सुंदरता नजर आती है। नर्म बनावट होने के कारण रोहिड़े की लकड़ी पर नक्काशी भी आसानी से की जाती है। इसकी लकड़ी की बेहद मांग होने के कारण रोहिड़े की कटाई दर काफी अधिक है। अत्यधिक कटाई के साथ ही धीमी बढ़वार होने के कारण अब इस पेड़ की संख्या निरंतर घटती जा रही है। रोहिड़े पर आसन्न संकट को देखते हुए इसे विलुप्त श्रेणी के पेड़ों में शामिल किया गया है। राजस्थान की वानिकी के सुनहरे भविष्य के लिए रोहिड़े के पेड़ को संरक्षित किया जाना बेहद जरूरी है।