हाड़ौती नाम की लेरां अस्या भू-भाग को सरुप सामै आवै छै जीकै गंगाऊ में तो अडावळ की डूगर्‌यां को फैलाव छै। ईं में चामल, कालीसिंध, पारबती अर परवण जसी बड़ी-बड़ी नंद्‌यां बै छै, ज्यांनै बीचै का मैदानी अलाका ईं हर्‌यो-भर्‌यो बणायो छै अर यहां का लोग-बागां की जिन्दगानी सुख सूं कटवाबा की जुम्मेवारी ले मैली छै। हाड़ौती का च्यार्‌यूं खूंटां पै गागरूण, रणतभंवरगढ़, बूंदी अर कोटा का च्यार कल्ला फैरादार की नांईं चौकसी करता र्‌या छै अर चंदरभागा, सीताबाड़ी, केसोराय पाटण अर बाणगंगा तीरथां का असनान में गंगा-असनान की सी मैमा बसी छै। अस्या रूखाळांन नै हाड़ौती की लोक संस्कृति ईं सैकड़ां बरसां सूं अखंड रखाणी छै।

हाड़ौती सबद जतनूं नुयो छै, ईं की संस्कृति उतनी पराणी छै। ‘गाडा टळै, पण हाड़ा नै टळै’ खैणात सूं जुड़्यो य्हां का हाड़ां सूं यो सबद जनम्यो छै, ज्यांको राज हाड़ौती में सात सो बरसां तांईं चाल्यो। हाडां की सामन्ती संस्कृति नै ऊं संस्कृति पै थोड़ो-सोक असर दखायो, ज्या सारा उत्तरी भारत मे फैली छै। सगळा उत्तर भारत की संस्कृति अेक छै, ज्यो थोड़ो-बोत आंतरो दीखै छै ऊंको कारण य्हां का इतिहास अर भूगोल में खोज्यो जा सकै छै।

अस्यां हाड़ौती में बी स्योजी, बिस्णुजी, बरमाजी, गणेसजी, सूरजनारायण अर देवी की उपासना होती री। बाद में बिस्णु भगवान की ठोर राम अर कृष्ण री उपासना नै ले ली अर गांव-गांव में वांका मन्दर बण्या। राम का भगत हनुमानजी की गढ़ी-अणगढ़ी मूरत्यां बी चौड़ा में अर मंदरा में थरपी गी। कृष्ण भगती नै राजमान्यता मलबां सूं हाड़ौती का मंदरा में वांकी घणी मूरत्यां पधराई गी अर वांका न्याळा-न्याळा नामां सूं वांकी भगती होबा लागी। अस्यां भगवान स्यो-संकर कै बाद सबसूं ज्यादा भगत कृष्ण भगवान का मळै छै, वै तो घर-घर में थरप्या अर पूज्या जा र्‌या छै। अस्यां देवी की पूजा साळ में दो बार नोरतां में होवै छै। कुळदेवी हर परवार कै साथ जुड़ी छै ज्या बंस की रगसा करै अर आडा बगत में वाई पणमेसरी काम आवै छै। ब्रज अर बद्रीनाराण की जातरा को हाड़ौती में घणो चळण छै अर गेलां में हर की पोड़ी पै गंगा-स्नान करबा की घणी उमंग य्हां का लोकमन में रै छै। गंगाजी को जळ घर ईं पबीत्तर करै छै अर गंगोज में लोगां ईं प्यायो जावै छै।

यो खैबो दोरो छै कै कस्या देवता लोक का छै अर कस्या शिष्ट समाज का गीत ब्याव में गाया जावै छै। हाड़ौती का हालरां की न्याळी छटा छै। अेक आडी दाम्पत्य-प्रेम का मोज-मस्ती का गीत छै तो दूजी आडी सोकड़ की सताई घर-धर्‌याणी की कुरळाट।

हाड़ौती में तेजाती, बगड़ावतां की हीड, परथीराज का कड़ा, रामनस्याण, हीरामनजी आद लोक-गाथां मलै छै। यांनै सीख बी दी छै अर ऊंई जागतो बी राख्यो छै। ‘तेजाजी’ तो हाड़ौती की ‘रामचरित मानस’ छै। लोक बेई तेजाजी सूं छोको प्रेरक चरीत्तर नै मल सकै। यो जीवण का घणा सारा प्रसंगां समेट्यां छै। ‘रामनस्याण’ में राम की कथा हाड़ौती लोक-जीवन का सांचा में बठाबा की कोसीस मलै छै जीसूं ऊंका पात्रां को सरूप बगड़्यो छै। ‘परथीराज का कड़ा’ में सामंती प्रभाव छै, पण लोगां की सूरवीरता की अगन नै चेताई रखाणबा की कोसीस बी।

रामलीला, गोपीचन्द लीला, गोरधन लीला, फैलाद-लीला, सत्य हरीचन्द आद तो भगती का लोक नाटक छै अर रंज्या-हीर, फूलांदे, खेवरो, ढोला-मरवण श्रृंगार अर वीर रस का। साँगोद का खाड़ा का न्हाण का तमासा में हास्य-रस मलै छै। लीलान की कथा तो वैई छै ज्ये पुराणां में मलै छै, पण वांईं लोकमंच कै मुजब बणा’र हारमून्या, ढोलक नंगाड़ा अर मंजीरा कै साथ गाई जाबा सूं पूरी रात ये चाळती रै छै। लोग-बाग सारी रात ठस सूं मस नै होवै। ख्याल अर तमासा बी लोगां नै घणा रुचै। सादगी में लपट्या ये लोक नाटक, सलीमा अर टी.वी. कै सामै अब ठैर नै पार्‌या। करसाणी का खाली दिनां में नीरांत सूं बैठ’र या लोक-नाटकां समझ’र वै आपणा-मनख जमारा सुधारबा बेई मनखपणा सूं रैबो सीखै छा। अब बना होवैगो, यो गैरो स्वाल छै।

हाड़ौती फ्याळ्यां ठेठ लोक-जीवन सूं खडी छै। वांकी विषय-वस्तु आसपास की होवै छै, पण वांकी बणावट में घुमाव-फराव रै छै अर सुणबा हाळाईं चुगळाबा की कोसीस बी, अर हंसी-मजाक की रंगत बी। आजकाल देस में चमचा घणा होयग्या अर वांपै घणा सारा कागद काळा कर्‌या ग्या छै ज्यां में कवि की मन की भड़ास अर सड़ांद रै छै, हंसी को शुद्ध रूप कम। हाड़ौती की ईं फ्याळी में बी ‘चमचो’ आयो छै, पण आपणी ईं अदा में–

छूला पाछै धर्‌यो गंदोड़ो म्हानै जाण्यो आदो।

नीचै हो’र उठाबा लागी, छोरा-छोर्‌यां को दादो॥

बायरां गोटा का घाघरा-लूगड़ा फैर’र राखड़्यां नथां गुट्यां बजट्टयां, बाजूबंद, कड़्यां नेवर्‌यां सूं सणगार कर’र हाथां में म्हैंदी रचा’र आपणी धरम भावना बी जगावै छै अर बसंदर होवै छै। ऊंदाड़ै तो चावळ-लापसी कोई भगवान कै भोग लागै छै अर बसंदर होवै छै। या चावळ-लापसी बडी-बडी जुनारां में मोतीचूर का लाडू बण जावै छै।

य्हां का मनख्यां को कला-प्रेम बी देखबा जोग छै। बाळपणां सूं ईंको सरीगणेस होवै छै। घर में जन्मी कन्या को पचेटा को चाव छूटबा बी नै पावै अर ऊंई घर की बारली भींत पै गोबर सूं सैंजा मांडबो अर गाबो सखायो जावै छै अर वा आपणी कल्पना अर हाथां का मेळ सूं भींत पै चांद, सूरज, काळो कागलो आद सराद का दिनां में मांडती अर यो हांस-गीत गाती रै छै–

खोड़्यो मसखोड़्यो नाई

सैंजा लेबा आयो

अर-तमण्यूं बेच तमाखू लायो

आखै गेलै पीतो आयो।

बड़ी हो’र वेंई तीज-गणगोर अर झूलां का गीत बी गाबा लाग जावै छै अर ऊंकी ‘फूंदी’, ‘घूमर’ में बदळ जावै छै। मां की लेरां लाग’र घर का आंगणा अर बारणा पै मांडण्यां बी मांडबा लाग जावै छै। खदीं वा बावड़ी, खदीं चोपड़, खंदी बीजणू खंदी पगल्या, अर नै-जाणै कांई-कांई मांडै अर वा चतराम की कळा में पारंगत बण जावै छै अर याई कळा म्हैंदी का रंग में ऊंका हातां में उतर आवै छै। राखी कै दन कूळां पै सरवण मांड’र आपणा मां-बाप की सेवा करता रैबा को लोठो दायित्व समझाबा की कतनी चातरूगता सूं भरी या व्यवस्था महताऊ छै।

साहित्य बेई घणूं लगाव हाड़ौती में मळै छै। बाळक का जनम सूं ले’र ऊंका दुख-सुख का संगी-साथी भगती अर प्रेम सूं भर्‌या लोक नाटक, ऊंकी बुद्धि की परख करण हाळी, फ्याळयां अर आछ्या-बरा खाटा-मीठा जिंदगाणी का अनुभवां सूं भरी लोक-कथान नै जाणै खुद सूं उंई संभाळतां चलाती री छै। कोई बी सुभ काम होवै पंडतजी का मंतरां की लारां-लारां बायरां बी गणेसजी, सती-द्‌याड़ी गीतां सूं उंई सरू करावै छै। द्‌याड़ी का गीत में मंगल-कामना अर देवी को आवाहन छै–

म्हारै आज अे आणंद उछाव

म्हारै टूटी द्‌याड़ी माता भाव सै।

सगाई, उकीरा, बन्धाक, बना-बनी, बीरो, सांझी, बासण, सेवरो आद।

स्रोत
  • पोथी : हाड़ौती अंचल को राजस्थानी गद्य ,
  • सिरजक : डॉ. कन्हैयालाल शर्मा ,
  • संपादक : डॉ. कन्हैयालाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादेमी, बीकानेर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम
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