लीला अर ख्याल दो अस्या नाट्य छै ज्ये लोक-नाटकां में सबसूं बाद में जनम्या, पण सबसूं आगै खड़्या। यां दोन्यां में कथा होवै छै। हाड़ौती में आज बी ‘कठफूतल्यां’ को खेल होवै छै। भोपो पाबूजी की फड़ नै गा-बजा’र खै छै, टूंट्यां में बायरां वरण-रात नै लाडा-लाडी का ब्याव को पूरो सांग रचावै छै। बैरुप्यो, मुनीम, बांदरा, कंकाळी आद को सांग धार’र मनोरंजन करै छै, भांड एकाभिनय सूं कंजूस दानी की नकल करै छै। ‘बीछूड़ां’ में बी बायर गीत अर अभिनय नै मला’र बीछू काटबा सूं होई पीड़ा नै दरसावै छै। सांगोद कस्बा का न्हाण सूं जुड़्या तमासा बी घणा नामी छै। ये चेत बद तेरस नै व्हां होवै छै। अणता कस्बा में भी न्हाण की सवारी में सांग बणै छै, घायलां खड़ै छै। ये तमासा होळी जळबा कै तेरवां दन सूं होवै छै। यूं खां कै होळी का प्रतीक रूप दुष्टता बळगी अर ऊंका तेरवां की खुसी अस्यां नकलां अर तमासां सूं पूरो समाज मनावै छै। यां तमासां में भोंडा, भद्दा। फूअड़ सांग अर संवाद होवै छै। ज्यां को बाळकां अर बच्यां पै घणो बुरो असर पड़ै छै। बजाय समाज को मनोरंजन करबा कै ये तमासा समाज का चरीत्तर में बिस घोळबा को काम बी करै छै।

ये लोक-नाटक-लीला अर ख्याल मनख की नकल करबा नकल उतारबा की आदत सूं जन्मया छै। नकल करबा की प्रवृत्ति मनख्यां में आद सूं चली आरी छै। न्हैना-न्हैना बाळक जद पगां चालबा लागै छै तो वै ज्ये बी आस-पास देखै छै वांकी नकल उतारबा लागै छै। खदीं वै मम्मी-डैडी बणै, तो खदीं लाडा-लाडी अर खदीं आपणा लाडी फूत्यां को ब्याव रचावै अर जीमण करावै छै। प्रवृत्ति सूं हाड़ौती का लोक नाटक जनम्या छै।

लीलांन में कथा होवै छै अर नायक नै फळ-परापत होवै छै। लीलान में खास-खास छै– रामलीला, गोपीचन्द लीला, मोरधज लीला, फैलाद लीला, सत हरीचन्द, ध्रुव लीला, तेज लीला, रुकमणी मंगल अर खेलां में रंज्या-हीर, फूलांदे, खेंवरो, ढोला मरवण आद।

लीलांन को अर ख्यालां को न्याळो-न्याळो उद्देश्य होवै छै। लीलांन में लोक-भगती या लोक में भगती भाव जमाबा को अर भगवान पै बसवास जमाबा को उद्देश्य रै छै, जबकि ख्यालां में खासकर मनोरंजन करबो अर सांसारिक जीवन का भोग-बलास अर चलाक्यां सूं नै खुस करबो, उद्देश्य रै छै। ‘गोपीचन्द लीला’ ईं छोड़’र बाकी लीलांन में सद रूप भगवान परगटै छै अर भगत को दुख दूर करै छै। गोपीचन्द भगवान का नरगुण रूप को भगत छै।

‘रामलीला’ की रचना तुलसीदास की रामायण कै आधार पै होई छै। होड़ौती में पीपळदा अर मण्डावरा नीमोद की रामलीला मैसूर छै। पीपळदा की रामलीला बगत-मुजब परिवेश अर गरीमा देबा बेई गर्गाचार्य नै ‘महेस मानस संगीत’ नाम सूं अेक छपवाई छै, जींमै नुया परसंग बी जोड़्या छै। मूल रामलीला में कथा अस्यां सरू होवै छै–

‘अेरी उमा भला पूछ्या समचार

राम अवतार कऊं बिस्तार’

में राम-जनम को कारण बी ‘रामचरित मानस’ जस्यो बतायो छै–

जद-जद दुख पड़्यो भगतां पै हुयो धरम को नास

असुर जनम्यां परथी आर।

दुखी होया गरु बरामण देवता, तब लीनो अवतार॥

‘मानस’ कै मुजब रामलीला चालै छै, पण फेर बी हनुमानजी ज्यानकी सूं असी बरी बात क्यूं खै दै छै–

मात थनै बरी बच्यारी बात,

कार लोप आई रावण कै साथ।

‘मानस’ की नाई ‘लीला’ को रावण राम सूं रागस जोनी सूं छूटबा बेई लड़ै छै–

‘वांसूं जाकर लड़ूं लड़ाई, म्हारो हो उद्धार

सांच्याई लड़ै छै, पूरो बैर करै अर सत्रू समझै

खोऊं थांको नाम आज देवी कै दंगू चढ़ाय।

‘गोपीचन्द लीला’ में नायक गोपीचन्द मां ममणावती का समझाबा पै ईं संसार ईं झूठो धंदो समझ’र बैराग ले छै अर फेर भगवा कपड़ा फैर’र ऊंकी रांणी सूं भीख मांगबा जावै छै। तद राणी खै कै–

माता तो कंवरां म्हां सूं नै कहो म्हे राणी थांकी

अस्यां या लीला रोचक बण जावै छै।

‘मोरधज लीला’ जैमिनीयाश्वमेध पर्व ईं आधार बणा’र रची गी छै। राजकंवर पदमावती को ब्याव ऊंको बाप मोर सूं कर दै छै। थोड़ा दनां बाद मोर मर जावै छै तो वा ऊंकी लेरां सती होबो छावै छै कै भगवान स्योसंकर उठी आण खड़ै छै, अर ऊंई मनख रूप में जीवन दे दै छै। अेक बार साधूआं का भेस में भगवान आ’र मोरधज अर पदमावती की परीक्षा लै छै– वांका बेटा करोत सूं चरवावै छै अर जद वै खरा उतरै छै तो भगवान वाईं सागसात दरसण दै छै।

‘फैलाद लीला’ को नायक फैलाद छै। फैलाद जी को पिता छो हरणाकुस। पूरबला जनम में हरणाकस पोळ्यो छो ज्यो सनकादिक मुन्यां का सराप सूं रागस बण्यो अर भगवान नै सत्रु मानै छै। फैलाद जी राम नाम लै छै। राम नाम लेबो नै छोड़बा सूं उंइ पिता नै घणी यातना दी। अखीर में जद फैलाद ईं मारबा बेई हरणाकुस नै खड़ग उठा’र वार कर्‌यो तो खड़ग की फैलाद कै तो नै लागै पण खम्बा कै लागी छै जीमें सूं नरसींग भगवान परगट होवै छै–

‘जद फैलाद पै खड़ग उठायो जद होयो होहोकार’

अर हरणाकुस ईं मार न्हाकै छै। या लीला ‘भागवत’ अर ‘विष्णु पुराण’ कै आधार पै रची गी छै।

सत्यहरीचन्द को आधार ‘मार्कंडेय पुराण छै। दानवीर हरीचन्द विस्वामित्र सूं छळ्यो जावै छै, जींसूं ऊंई राणी अर बेटा को बजोग सैणो पड़े है। ‘लीला’ कै बीच में मां-बेटा को मलाप हो जावै छै, पण बाद में बेटो मर जावै छै। लोग मानै छै कै राणी डाकण छै ज्या ऊंई खागी। ऊंई मृत्यु-दण्ड मलै छै। जद राजा आपणा मालक की आग्या मान’र ऊंई मारबा बेई तरवार उठावै छै, तद भगवान बामण रूप में परगट हो’र लीला ईं सुखान्त बणा दै छै। या लीला ‘सत’ की थरपणा करबा बेई रची गी छै।

‘सत नईं छोडूं बचन प्रमाण, रहेगा जद तक धड़ में प्राण

अस्यां ‘ध्रुव लीला’ छै ध्रव लीला में ध्रुवजी का तप को बखाण छै। ‘तेज लीला’ में तेजाजी का बाचा देबा अर ऊंसू मौत ताईं पूगबा को बरणन छै। ‘रुक्मणी मंगलट’ ‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’ के आधार पै रची लीला है। जीमें भगवान करसन अर रुकमणीजी को ब्याव को बरणन छै।

हाड़ौती में ख्यालां को बी मंचन होवै छै। यां खेलों का नायक राजा होवै छै जे बिलासी है। ईसूं यां में छल-पड़पंच भोग-बलास अर लड़ायां खुल’र दरसाई गी छै। ‘रंज्या हीर’ में नायक-नायिका को प्रेम ‘इश्क हकीकी’ छै। ईंसुं खेल में प्रतीकात्मकता मलै छै। दूजा खेलां को प्रेम देह सुख सूं जुड़्यो छै।

‘रंज्या हीर’ की कथा लैला मजनू की दोस्ती का आधार पै वणी छै–

‘लैला मजनू करी दोस्ती भाव खुदा का रक्खा।’

वरिससाह का ‘हीर रांझा’ अेक पंजाबी प्रेम कथा छै। ईंका आधार पै हाड़ौती को यो नाटक बण्यो छै। नायक रंज्या नै सपना में रूपाळी ‘हीर’ देखी अर ऊंसै मलबा बेई तड़प उठ्‌यो। मंतरी बीरबल नै वा गेळ छोड़वा की बीनती करी, पण नै मान्यो। अर आपणी सांची लगन हूं ऊंसै जा मल्यो। ईं खेल में हीर की सुन्दरता को जमकै बरणन होयो छै–

नैण बाण, भोरां कुबाण म्हारै सीतल देगी तीर

बारा बरस की वोसता, वा ओढ्यां दखणी चीर

‘फूलांदे’ को नायक नेपालकोट को राजो केसरीसींग छै। नायिका फुलांदे सपना में आर ऊंई मोह लै छै। राजो ऊंई पाबा बेई चाल दे छै, पण गेला में अेक ठगणी का चक्कर में पड़ जावै छै, पण फेर आपणी अकल सूं छूट भागै छै अर फूलांदे सूं जा मलै छै। ईं खेल में बी नायिका को रूप रूपाळो छै।

आभा की सी बीजळी’र, ऊंकै दीयो बधाता रूप।

नैण बाण, भोरां कुबाण, ऊंकै लगी दंत पे चूंप॥

बाळ-बाळ गज मोती सार्‌यां, केसर को सो रूप।

‘खेंवरा’ को नायक आबळदे की रूप-म्हैमा सुण’र ऊंपै रीझ जावै छै अर आपणी भाबी की लेरां लुगाई को भेस बणा’र जावै छै अर ऊंसै जा मलै छै। आबलदेका भाई बालां ईं जद ईं बात की तोल पड़ै छै तो फौज ले’र खैबरा सूं जूझ जावै छै अर ऊंई घायल कर दै छै। बाद में मर जावै छै। भगवान स्योसंकर ऊंई नुयो जीवन दै छै। फेर दोन्यां को ब्याव होवै छै–

स्यो जी नै म्हां अम्मर करीया, थारा जीव के ताईं।

गरजोड़ा हूं फेरा खालां, रणखेतां कै मांईं॥

‘ढोळा मरवण’ राजस्थान की आपणी कथा छै, जीं घणी ख्यात मली छै। नायक ढोला को ब्याव राजकुंवरी मरवण सूं बाळपणा में हो ग्यो। जींकी दोन्यां याद नै री। अेक दन मरवण नै आपणी भायली सै पूछी–

परणी छूं कै कुवारी केसर, सांची खै समचार।

सब सखीयां तो मंगळ गावै, म्हारै बी दुसार॥

उठी राजो रेवा का प्रेम का चकर में पड़ जावै है। मरवण अब अेक सुवा अर अेक चारण ईं खंदा’र नायक ईं ऊं भंवर-जाळ सूं खाड़ै छै अर फेर दोनी मलै छै। नायिका प्रधान ईं खेल में तरल-सरल कथन भर्‌या पड़्या छै। प्रेम का तरकोण सूं बणी या कथा हाड़ौती लौक-जीवन में अतनी घल्ल-मल्ल होगी कै ‘ढोळो’ सबद प्रेमासक्त लोगां को पर्याय बण ग्यो। खेल को उद्देश्य छै–

परनारी की कांईं दोस्ती, ईमें कांईं सार?

हाड़ौती का लोक नाटकां कै बेई कोई तकनीकी मंच नै छावै। ये तो खुल्या आसमान कै नीचै होवै छै। कदीं-मदीं मंच पै चांदणी ताण दै छै। उस्यां लीलान को टेम तो बंध्यो छै, पण खेल तो खदी बी कर्‌यो जा सकै है, पण करसाणी सूं नचींत होबो जरूरी है। ये रात की दस बज्यां हूं भाग फाटै जद ताईं चालै छै। ढोलक की थाप, मंजीरा की टण-टण अर हारमून्या का सुरां कै बीचां सूं पात्रां का ऊंचा सुरां सूं नाटक की तानां वातावरण में गूंजबू करै छै। ये तानां दोहा छंद में रै छै जो 27 मात्रा को होवै छै। रामलीला का ढाई कड़ी का दोहा सगळा सूं न्याळा छै। पात्रां को तणगार कर्‌यो जावै छै। मूंडा पै रामरज माटी या दूजा लेप पोत्या जावै छै, जीपै बींदी तलक आद लगा दै छै। लुगायां को काम लोग करै छै। जे घूंघटा तो काढ्‌यां रै छै, पण वांमैं सूं बांकी लांबी-लांबी मूंछ्या झाईं मारती रै छै। बण्या-बणाया चैरा, मुकट, टोप्यां अर कपड़ां सूं पात्र खुलै छै।

नाटक करबा की ठाम ईं अखाड़ो खै छै। जींको पूरो जिम्मो, उसताज पै रै छै। यां लोक नाटकां का रचनाकारां को पतो तो नै चालै, पण उसताजां को बरणन गणेस सुमरबा कै पाछै आवै छै–

बछराज उसताज हमारा, कड़ा बगस्या आई।

बीच अखाड़ा करां तमासो, गजानंद नै धाई॥

हाड़ौती लोक नाटकां की लेरां दो अेक दन्तकथा अर जनश्रुति जुड़ी छै। उसताज नगराणी राखै छा कै आपणो नाटक बारै नै चल्यो जावै। अेक बार अेक सूदा-साक बामण नै ‘रामलीला’ की नकल कर लेबा दी तो यो दोहो चाल पड़यो–

गरु सांचो छै मांगीलाल।

दाळ-बाटी में बोयो ख्याल।

अर दूजी जनश्रुति छै का खेंवरा बण्या पात्र नै जोस में आर गायो–

म्हारा खंजर को पतीयारो, धड़ सूं मसतंग कर द्‌यूं न्यारो।

अर सांच-मांच बाला बण्या पात्र को माथो तरवार सूं काट न्हाक्यो।

आजकल यां लीला, ख्यालां जस्या लोक नाटकां की रुखाळी अर यांकी सुरक्षा की घणी जरूरत है, क्यूंकै सलीमा अर टी.वी., रेडियो सै ये लोक कला का अनोखा रूप डूबता जा र्‌या छै।

आज जरूरत छै या लोक नाटकां ईं जीवित राखबा की। टी.वी. नै असी कोसीस करी छै कै वांका कैसेट बणा ल्या जावै। उठी लोक कलाकारां थपथपा’र सरकार छा’ री छै का वै आपणी कला ईं मरबा नै दै।

हाड़ौती का ख्याल अर लीला आपणी थाती है अर आपणी लोककला का आछ्या नमूना छै।

स्रोत
  • पोथी : हाड़ौती अंचल को राजस्थानी गद्य ,
  • सिरजक : ब्रज मोहन शर्मा 'मधुर' ,
  • संपादक : डॉ. कन्हैयालाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादेमी, बीकानेर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम
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