माटी री ममता रो सिणगार करणो सुपनै रो सभाव सदा स्यूं रह्यो है। मन रै मतै चालणो, सुपनां री सीख रो सार मान्यो गयो है। देस-परदेस रो आंतरो सुपनै री सोभा होवै। कमावण-खावण सारु देस रो घणो मानखो परदेसां में बास करै। धन-माया, माण-मरदाज नैं निभावै। कुटम-कबीलो कमाऊ री आस पर देस में दिन तोड़ै। कमाऊ आपरै काम स्यूं बिलम्यो रैवै। परदेसी री आस रो पूरो बिसवास करणो सुपना सिखावै। चोमासो, चाकरी करता किरसाणा नै घणो याद आवै। गांवां री गळी में काम करतै मिनख रो मन भटकै। पाछो बावड़तो मोजी मन आप री उड़ाण भरै। पण कुसमै री मार पड़ै जद देस छूटै, साथ बीछड़ै। हजारां कोसा रो आंतरो, सुपनां मैं बोलै-बतळावै, रोवै-गावै, कमतरियां नै हिम्मत बंधावै। आप री धरती रो कोड करणो तो कुण भूलै! जठै रो जीव, बठै ही सुख पावै। दिन गिणतां-गिणतां ऊमर रा बड़ा-बड़ा बरस बीतता जावै पण परदेसी रो मन सुपनां में देस री धरती रा दरसण करै। बिरखा री रुत बीतती जावै पण सुपनो साचो कद होवै! सारी ऊमर, सुपनां री भोळप मैं बीतै। ऊग्यै-आथवैं रो ज्ञान गांव नैं याद करै, माटी रो हेत घणो जोर मारै अर सुपनां में सारी-सारी रात जागै।
चढतो तावड़ियो, ढळती छियां, घर रै आंगणियै रो आसरो, गांव रै भायलां री भेळप नैं हेलो मारै, पण परदेस री पिछाण में पराई भोम रा लोग-लुगायां री भीड़ में आपरै काम में बिलम्यै मानखै नैं ओ देस रो हेलो कियां सुणीजै! उठता-बैठतां, खातां-पीतां देस री ओळ्यूं आवै। सोता-जागतां सुपनां स्यूं बात करणै रो कोल करणियै परदेसी रै मन में आप री धरती री आस रो उजास उथळ-पुथळ मचवतो रैवै।
तीज-तिंवांर आवै। गांव रो गांव उछब रै रंग में गीत उगैरै। भाई नें बैन रा गीत पाछो बुलावै। धण नैं धणी री सुध आवै। टाबर-टोळी आपरा कोड करै। सुपनां रो ओ खेलो चालतो जावै। आस रै आसरै सांस लेवणी पड़ै। रोजी-रोटी रो झमेलो कद मिटै, कद सुपनों सांचो होवै, परदेसी कद पाछो बावड़ै! कद-कद करतां मिनखजमारै रा जोवता-जागता दिन पूरा होता जावै। बरसां रा बरस बीत जावै। कमाऊ पुरखां रो करजो धोवतो-धोवतो आपरै मन में सुख रा सुपनां सूं बात करै। अेक जलम री भूख, दूसरै जलमरै भरोसै छोडणी पड़ै। पण सुपनो सदा जगावै।
सुख-दुख रै पालणै में पळतो बाळपणो, बळती में पूळो नाखै। गिणती रा दिन गांव में सुख सूं काटण सारू सारी ऊमर परदेसी री पराई भोम में सुपना सूं मन बिलमावणो पड़ै।
गांवां रा लोग-लुगाई आप-आपरा टाबरां में दिन बितावै। चोमासै री रुत खेतां रो काम करतां-करतां सुपना रो संसार बणावै। भावना री ऊमर गांवां रै किरसाणा रै खेतां में फळै फूलै।
गांवां री लुगायां नैं घणो काम करणो पड़ै। करमठता, ईमानदारी अर ममता री चितराम मूरत बठै रै नारी-जीवण रो जीवतो-जागतो रूप है।
विग्यान री छिंयां सूं दूर गांवां री नारी आपरै कुटुम-कबीलै नैं सेवै। साच री साख, सुख रा सुपनां नै पगां चालणो सिखावै। गांवां री ममता रा दरसण करणै रै कोड सूं सहरां रा लोग खेतां री रुत में सहर नैं छोड’र गांवां रै जीवण रो सुरंगो रूप देखण सारू बठै पूगै। भावना री अमरता, गांव री नारी रै सुख रा सुपनां री बेल फळै-फूलै।
थोड़ा दिनां री खातर बड़ा-बड़ा खेतां री धरती रो कण-कण सिणगार सजै। खळो निकळतां-निकळतां सुपनो सांचो होवण रा दिन आवै। मोठ, बाजरी, काकड़िया, मतीरा, जुंवार, तिल, गुवार-सगळा लोगां नै भलै समैं री आस बंधावै पण सुपनां री सेज तो साच रै कांटां में उळझ्योड़ी रैवै। आप-आप रै सुख-दुख रा सीरी जद दूर परदेसां में बसै तो घर रै टाबर-टोळ्यां री हंसी-खुसी मुरझायोड़ी रैवै। मोल री बाजरी खातां-खातां नीठ जमानो होवै अर जमानो होवै तो घर री हालत संभळै। पण सुपनां री काया तो सदा कळपती रैवै। आंसूड़ा, गांव री गोरी रा जलम-जलम रा साथी बणता जावै। आस री ऊमर बडी हुवै। सुख री घड़ी सरणाट करती आवै अर निकळ जावै। बखत-बे-बखत आपरै-परायै रो आसरो तकतां ऊमर पूरी हो जावै। गांव री नारी री करूणा रो कळपतो रूप सहरां री तितल्यां री छिंयां सूं भी दूर रैवै।
गांवां रो पसुधन बठै रै किरसाणा रै सुपनां नैं सांचा बणावण में खास काम करै। पसुधन रै आसरै पळतां गांवां री आबादी पर कुसमै री काळी छिंयां सुख रा सुपनां रो घणो मोल मांगै। गरीबी गांवां रै लोगां रै साथै जलमै अर मरतां-ताईं बांरो पिण्ड कोनी छोडै। मिनख-जमारै रो सुख, सुपनां सूं मन बिलमावणै नैं ही मानै। सीयाळो, ऊनाळो राम-राम करतां कटै तो चोमासो आपरै पूरै ठाठ सूं पधारै। दुख-सुख, जलम-मरण रै पालणियै में पळतो बाळपणो होस री ऊमर रै बारणै ताईं आवतां-आवतां अधमर्यो-सो हो जावै। भूख रो भूत गांव री जवानी रो खास दुसमण होवै। सगळा किरसाणा कनै बरोबर री धरती नहीं होवण स्यूं गांवां रै लोगां में ऊंच-नीच रो भेद-भाव, जात-पांत री छूआ-छूत दिन दूणी रात-चोगणी पळै।
अन्ध-बिसवास गांवां रै लोगां रो सबस्यूं बड़ो दुसमण होवै। भोळप रै भरोसै जीवण काटणो पड़ै जद अन्धबिसवास री सरण लेवणी जरूरी हो जावै। पण भावना री साझी जोत त्याग रै दीयै रो सिणगार करै। अेक-दूसरै नैं आपरो मानणो पड़ै जद जाय’र पेट में दो दाणां रो जुगाड़ बैठै।
साहूकारां रो जूल्म, ब्याज-बिसवो, खड़ी खेती री बोली लगावण सूं कोनी चूकै। पण गांवा रो लोग सिर रो अेक-अेक पीसो मरती टेम तक चुकावण स्यूं कोनी मुकरै। साहूकारां घर भरण रो काम करणियै किरसाणां रा सुपनां रो सुख सदा आभै रो दीयो बण्यो रैवै।
समाज-सिक्षा रै अभाव में किरसाणा रा टाबर पढ़णो-लिखणो सीखणै री उमर में या तो खेतां पर काम करै या मजूरी में आप रा दोरा दिन तोड़ै। जठै पोसाळ है, बठै मास्टर कोनी, जठै मास्टर है, बठै पोसाळ कोनी। आज गांवां री उखड़ी-उखड़ी सी हालत रो कारण कुछ भी होवै पण जठै ताईं गांवां री नई पीढी नैं आपरी हीमत पर भरोसो नीं होवैलो बठै ताईं कोई विकास काम मैं नीं आवै। देस री दुर्दसा रो खास कारण गांवां री बुरी हालत है। गांवां रो समाज विग्यान रै विकास स्यूं कोई लगाव राखै कोनी। अन्धबिसवासां री गुलामी अठै आम बात है।
छड़्या-बीछड़्या लोग दिसावरां स्यूं आवता-जावता रैवै। घर-बार, टाबर-टोळी देस में आपरी मजूरी करता रैवै। गांवां री आर्थिक व्यवस्था बुरी-भली जिसी भी है, बा बठै रै लोगां रै काम तो कमती आवै पण दुख घणो देवै।
जातीवादी समाज-व्यवस्था रो जीवतो-जागतो रूप गांवां री आबादी में देख्यो जा सकै। पुराणा टोटका खूब असर करै है बठै री जनता पर। विग्यान और सिक्षा रो नयो चानणो धीरै-धीरै गांवां रै अन्धबिसवासां रो नास करण में सफळ होसी, पण आज री घड़ी तो गांव रै लोगां री भोळप पैलां दाईं साहूकारां री लूट रो आधार बणियोड़ी है।
दिसावरां स्यूं पाछा आवण वाळा कमाऊ गांवां में थोड़ा दिन टेकै। बांरी पूरी ऊमर पाछी दिसावरां में जावती कटै।
गांवां री नयी पीढ़ी सिक्षा रै सार नैं समझणै री चेस्टा में दिन-रात अेक करसी जद जाय’र किरसाणां अर कारीगरां रो साधारण ग्यान अेक-दूसरै रै काम आ सकसी।
दिन-दिन दिसावरां री कमाई री रीत उठती जावै है। गांवां रो विकास बठै रै लोगां खातर घर बैठ्या ही काम-धन्धै रो जुगाड़ करण री कोसीस में है। साहूकारां री लूट में कमी जद ताईं नीं आवैली गांव रै लोगा रो खून-पसीनो बांरै सुख-दुख रो सीरी कोनी बण सकै।
सांस्कृतिक परम्परा नैं निभावणी तो गांव रा लोग भली भांत जाणै, पण संस्कृति रै नयै सिणगार रो विचार कर्यां बिन्या जूनी बातां सूं काम चलणो मुस्कल ही है। गांव रै नयै रूप-निर्माण री बात बठै रा जूनां लोगां रै कमती समझ में आवै। पढ्या-लिख्या लोग गांवां में जावण वास्तै सोरै सांस राजी कोनी होवै। बठै रा सुख-दुख पढ्या-लिख्या लोगां सूं कोनी झलै। पकी-पकाई खावतां छोडणी दोरी होया करै, पण गांवां री जनता री ममता रो हेलो सहरां रै पढ्या-लिख्या लोगां नैं आप री धरती रो मोह छोड गांवां कानी रुख करण नै बुलावो देतो रह्यो है, अर आज भी दे र्यो है।
गांवां रै लोगां रो कल्याण तो बै खुद ही कर सकैला पण भोळा रो भरम भगावणो पड़सी।