धवले पूर्वी राजस्थान की ‘पद-शैली गायन’ के सबसे लोकप्रिय कलाकारों में से एक हैं। उनका जन्म हिंडौन कस्बे के नजदीकी गाँव लालारामपुर में 6 फरवरी 1957 ई. को हुआ। धवले के पिता श्री लक्ष्मीनारायण मीणा ख़ुद ‘कन्हैया’ गाने वाले कलाकार थे और माता रामप्यारी ‘रसिया’ गायिका थीं। संगीत और कविता का खजाना उन्हें विरासत में मिला था, जिसे तराशकर और सँवारकर वे नित नया और समृद्ध करते गए। उनकी औपचारिक शिक्षा कक्षा चार तक ही मिली। उनकी पढ़ाई के विषय में हिंदी के प्रतिष्ठित कवि प्रभात का मानना है कि यह शुभ हुआ कि उनकी स्कूली शिक्षा अधूरी रही। नहीं तो ये पढ़-लिखकर किसी दफ़्तर में टाइपिस्ट बनकर रह जाते और लोक की इस महान परंपरा और गायन की इस अमूल्य थाती से यहाँ का लोक मानस वंचित रह जाता।
धवले ने हर लोक-आख्यान और परंपरा से प्राप्त कथाओं में अपनी कल्पना से नयापन दिया और उसे लंबे समय तक प्रासंगिक रहने योग्य स्वरूप प्रदान किया। उन्होंने इन पदों में भक्तिपरक रचनाओं के साथ ही अपने इलाके के सुख-दुःख और इच्छा-आकांक्षाओं को अपना स्वर दिया। उनके पदों की विषय-वस्तु बहुत विस्तृत है। भक्ति, रीति, नीति से लेकर धवले ने धार्मिक कर्मकांड और सामाजिक बुराइयों को भी अपने पदों का विषय बनाया। तुलसीदास को धवले अपना आदर्श इस अर्थ में मानते हैं कि तुलसी ने राम की कथा को घर-घर पहुँचाया। इसी आदर्श पर धवले ने भी अपनी रचनाओं को अपने इलाके माळ-जगरोटी की भाषा में रचकर और उन्हें गाँव-गाँव अपनी मण्डली के साथ घूमकर और गाकर जनता की जुबान पर चढ़ा दिया। उन्होंने अपने अंचल की भाषा में कथात्मक पद रचे। धवले ने परंपरा से मिली हुई इन कथा-कहानियों में नया रंग भरा और उन्हें जन-जन में लोकप्रिय किया। सामाजिक बुराइयों के मूल में वे अशिक्षा को मानते हैं इसलिए इन सबका एकमात्र समाधान शिक्षा को मानते हैं, जिसका अपने पदों में बार-बार उल्लेख किया है। धवले ने लोक-आख्यानों का पुनःसृजन किया। इसके पीछे उनकी रचनात्मक दृष्टि रही है। वे कबीर, रहीम आदि चर्चित और शिवराम जैसे अलक्षित कवियों की रचनाओं को भी अपने पदों के बीच-बीच में सुनाते हैं, इससे मूल कथा में माधुर्य बढ़ता है। इनके प्रमुख पदों में कन्हैया, सुड्डा, राम रसिया, हेला ख्याल, जिकरी, भरतरी-पिंगला, कच-देवयानी, ढोला-मारू, तारा-चंद्रमा, नरसी जी का पद आदि हैं।
धवले की भाषा माळ-जगरोटी की भाषा है। इन्होंने अपनी आंचलिक भाषा को एक ऊँचाई दी, सम्मान दिलाया। उनकी शैली में गंभीरता और गहराई है। कहन की इस भाषा में ऊपरी और उथली चमक-दमक नहीं है, बल्कि एक मर्यादा आवेष्टित सौंदर्य है। संवाद इन पदों के प्राण हैं। यानी संस्कारवान और मूल्य-समृद्ध भाषा धवले के पास है।