आदमी कूरड़ी पर खड़्यो है। कूरड़ी! भांत-भांत रो मैल। कूरड़ी बधती जाय रैयी है, क्यूंकै मैलो रोजीना आय-आय’र पड़ै अठै। आदमी रा पग भर्‌योड़ा है मैलै में; हाथ गंदा है, मन मैलो है।

आदमी रो मन कूरड़ी सूं घाट कोनी– पलक-पलक बदळणियो मन! मैलो अठै सूं ही आय-आय’र म्हारै आळै घर रै मांय कूरड़ी बणतो जाय रैयो है। अर इणी कूरड़ी में दब्योड़ा है क्रान्ति रा बीज। मैं बैठ्यो उड़ीक रैयो हूं, कद ऊगै।

कूरड़ी बड़ी अजीब है। इणमें आदमियत रो कचरो तो है ही’ज साथै ही और कई भांत रो कचरो है, जियां आदमी रो मैल, राजनीति रा मैल सूं भर्‌योड़ो गाभो। समाज रो कूड़ो-कचरो नैतिकता रा राद-लोही, साहित्य री बेटियां अर मरजादावां रा टूटियोड़ा हाड-पांस आद-आद। गन्डकां रो खायोड़ो आदमी इणी कूरड़ी पर ऊंधै माथै पड़्यो है। थे भी देखता हुवोला, मैं भी देखूं-रोजीना।

मनै ईं कूरड़ी सूं मिनख री आत्मा कचोटती, कुरलाट मेलती सुणीजै। सुण’र मैं राजी हुय जावूं अर आगलै जुग रै प्रति आशवस्त हुय जावूं कै क्रान्ति रा बीज फूट रैया है; अब अै ऊगैला। जुग बदळसी।

कई लोग डरै। चिमकै। कुणसा लोग? बै लोग जिकां आदमियत अर विसेसतावां नै मार-मार कचरो कर कर इण कूरड़ी पर गैर-गैर ईं नैं बधावै। बै आं बीजां नै फूटता देख’र आपरा पग मेल देवै ऊपर; ताकि अै ऊग नीं सकै पण के ऊगतै सूरजी नै बादळिया रोक सक्या है? ना। तो, सुणो भाईड़ो सुणो! कूरड़ी में सूं आवती, कानां नै चीरती आवाज नै सूणो!! अर चेतो! थारै घर में कचरो हुवतो जाय रैयो है। थे चेतो, क्रान्ति ऊगसी। चेतना री क्रियात्मक रूप ही क्रान्ति है। चेतना बीजां में सूं नीसरै। अै बीज थे हो। थे कठै पड़्या हो, सोचो!

सूरजी अंधारो लेय’र आवै रोजीना। थे इण अंधारै में चूंचाळ्या मतना मारो; थारी आंख्यां साबत है, देखो! इण अंधारै री बुणगट नै देखो। आंख्यां में जोत है। अै सूरजी है दोय। थारी काया रा सूरजी! प्रकास अर प्रकास। आत्मप्रकास! थारै सरीर में ही है, आत्मा। इणनै मारो मतना, जीवती रैवण दो। थे मारो तो अंधारो धरती पर आय जावै अर सवार हुय जावै अर सवार हुय जावै आदमी पर। सूरजी बिचारो कांई करै! प्रकास! आंधो हुय जावै! अंधारो! इण अंधारै नै परै करो थे। आंख्यां री जोत नै आत्मा री जोत सूं मिलावो अर फेर देखो; थांनै दीखसी। देखो! थारै सामै इन्सानियत तिलमिला रैयी है, छटपटा रैयी है अर दम तोड़ रैयी है। इणरो कस्ट काटो थे; नहीं धरती पर आदमी खतम हुय जावैलो मिनख। कोरा नर-कंकाळां रो कांईं करस्यो!

आज री राजनीति रजवाड़ा सूं भी भ्रस्ट है। जिण तरियां रजवाड़ा नै नकार्‌या, उणी तरियां इणनै भी नकार दो। प्रजातन्त्र आदमी रै सामै भिसळ्योड़ो खड़्यो है। लाळ सूं धरती रो सरूप बिगड़ रैयो। इणरै रूप सूं आदमी खड़्यो डर रैयो है। सत्ता री भूख रो सांग देख्यो क! बहुमत रो राज देख्यो क! नीं देख्यो हो तो देखल्यो! थारै सिर पर नाच रैयो है अर खाय रैयो है, मिनखपणो! मिनखमार अर प्रजातन्त्र! धर अंधारो कर देवैलो, थे दीया त्यार राखज्यो। कठै अंधारै रो राज नीं करण लाग जावै, धरती पर, आदमी अर थारै पर। कठै अंधारै रो राज नीं आय जावै, नीं नगरी चौपट हुय जावैली, नगरी! म्हारो घर, म्हारो देस!

राजनीति री कूरड़ी में मनै बीज मूंडो काढता दीखै अर ऊपर पड़ता दीखै पग। पण क्रान्ति रो बीज कदे पगां सूं दबै कोनी, फूलै अर फूटै। अेक दिन क्रान्ति इण कूरड़ी में ही सूं नीसरैली अर पैली पोत कचरो करणियां रो कचरो करैली; समै पैलां चेतो। मांय बैठ्यै कुमाणस नै मारो। मिनख नै छाती रै लगावो; मांय बाड़ो।

आवो में थानै समाज दीखावूं। बै देखो! ल्याळी आदमी नै उठाय’र लेय जाय रैया। गाय नरग में मूंडो देय रैयी-थारी भोळी गाय। बळद नै बेहोसी है, भूखो है बो। भूखा मरतो बो मैलो खाय रैयो है; समाज री आतमा में बदबोय बड़गी। सांढ समाज रा हाड़ तोड़ रैया है; अर चारूं कानी चुप्पी! नाहर री खोळ ओढ्योड़ा गादड़ा सूं गाय बेचारी डरपै; धर-धर धूजै। गन्डकां सूं डरपती बकरी री हालत खराब। थानै दीखै है के? बा देखो! बकरी गन्डकां री खायोड़ी खड़ी। मांस चिलक रैयो है बींरै डील सूं। करवांस्योड़ो डील! भांण-बेटियां री हालत हीज है आज, थारै सामनै। अर थे चुप रैवो, कितरा’क दिन रैसो।

आवो, देखो बजार! आदमियत रै साटै अठै चीणी मिलै-मीठो। बजार! आदमी री मजार हालत माड़ी है, आदमी री। बजार में बाकायदै बडेरां री बढईगीरी है, जिकी आदमी रै सरीर पर भसोलो मार रैयी है, रंदो देय रैयी है अर आवाज, आय रैयी, मैं सोवणो बण रैयो हूं छोल-छोल।

और आगै चालो! बो देखो! रेवड़! रेवड़ में अेवाळिया हांक रैया है अर आपां चाल रैया हां। आगै खाडो है पण डर कोनी; क्यूं कै आपां सागै जीवणै-मरणै री सोगन खा मेली हां नी! अर कचरो, कूरड़ी बधती जा रैयी है। रेवड़ री मरजादा आगै चालण आळी लरड़ी रै लारै-लारै चालण री है अर मरजादा आज कायम है। कित्ती अजीब मरजादा है आ! और सै मरजादावां टूटगी है पण नी टूटी।

समाज री टम-टम खराब है। भिड़वां तो आवाज कोनी नीसरै। पण आज रै आदमी नै ही चोखी लागै, क्यूं कै बो आदमी कोनी। लोग कैवै, टम-टम साबत है। मैं कैवूं– खराब! किणरी बात सही? निरणै थे करो। टम-टम कुण है? समाज सुधारक लोग! आंरो सरुप थारै सामै है। थे निरणै करल्यो; भलाई सूं मनै बताज्यो। और टम-टम कुण है? साहित्य संरचना करण आळा रचना धरमी लोग? पोथ्यां उलट-उलट’र देखल्यो अर निरणै करल्या।

टम-टम रै धरम नै आज थे उलट-पलट’र देखो तो सरी! काळूंस लाग रैयो बांरै। कोरी कसौटी बेचारी कांई करै? कैवत नै काळूंस खायग्यो।

काल थे कैवै हा नीं कै अनाथलयां में पाप पळ रैयो है; अर बो फलां कलम आळो कलम पकड़्योड़ा लोगां नै नचाय रैया है नेतावां रै हाथां खुद नाच रैया है नेतावां रै हाथां खुद नाच रैयो है। इण काळी-कळूंटी राजनीति नै साहित्य में लाय’र साहित्य री सोरम नै खतम कर रैया है, लोग। मिनख आंसू भोत नाराज है; पण बींरी नाराजगी रा के टक्का बंटै। राजनीति सूं कचरो लेय’र लोग समाज अर साहित्य में मिलाय’र कूरड़ी माथै नाख रैया है। कूरड़ी बधती जाय रैयी है। साहित्य में सांच कोनी, समाज सुधारकां में सुधारकां में सुधार री बात कोनी; जद प्रकास ही कोनी तो समाज रै चानणो कठै सूं करसी अै लोग। स्वहित री जड़्या में पाणी देय रैया है अर सींच रैया है अै लोग। काम तो कचरो है।

कूरड़ी! कितरी बड़ी हुयगी है! मैं रोजीना देखूं, दिन पर दिन बधती जाय रैयी है। लागै सुख रा दिन सांकड़ै है। मैं सुणी है कै इण कूरड़ी रो वैज्ञानिक विश्लेषण हुयो है। वैज्ञानिक लोग इणरो अध्ययन कर परा सार काढ्यो है कै कूरड़ी में खात हुवै, जिणमें बड़ी उरवरा सगती हुवै। खूब धान उपजासी आ-इन्सानियत रो धान। इण कूरड़ी में क्रान्ति रा बीज है। क्रान्ति बारै आसी। इणी कूरड़ी में सूं क्रान्ति निसरसी जणाई म्हारै घर रो आगौ सुधरसी।

मिनख रै चिन्ता है लोग तेन्दर करै। लोगां रै अर आदमी रै इण वास्तैई आपसरी में करड़ावण रैवै। खींचाताणी सूं म्हारो घर तण रैयो है।

बाड़ी बळ रैयी है अर पौध खराब है। मैं तो घणा ही जतन करूं पण कोसीस चालै कोनी। म्हारै बस सूं परै री बात हुयगी है आज। पण अब मनै कोई और उपाय करणो पड़सी। म्हारै ‘रैतां-सैतां’ बाड़ी कीकर बळैली! जे बळै तो मनै ही मर जावणो चाहिजै! नहीं बाड़ी नै हरी-भरी राखणो म्हारो धरम है। पौध नै इण कूरड़ी री खात देय’र सावळ त्यार करसूं फेर देखसूं कै कियां खराब हुसी! कियां! कोनी लागै? कियां बाड़ी हरी-भरी कोनी रैवै? क्रान्ति! देखो! क्रान्ति कूरड़ी सूं नीसर’र आदमी में बड़ रैयी!

मैं कूरड़ी सूं राजी हूं; क्यूं कै इण में सूं म्हारै आळै घर रो सुधर्‌योड़ो आगै नीसरसी। थे कूरड़ी बधावो अर मनै राजी करो यानि क्रान्ति नै। भगवान थारो भलो करसी।

स्रोत
  • पोथी : माटी सूं मजाक ,
  • सिरजक : बी. एल. माली ‘अशान्त’ ,
  • प्रकाशक : भूमिका प्रकाशन, लक्ष्मणगढ़ (सीकर)
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