सगै सैण हित हेत, गड़ा गड़ गर करें।

खस सूं तांता तोड़, रह्यो नहीं तरकरे॥

यूं तो भगत ने होय, जगत सुं लाजतां।

हरि हां मूलराज भज राम, नगारां बाजतां॥

स्रोत
  • पोथी : श्री मूलदास जी की अनुभव(अनभै) बाणी ,
  • सिरजक : संत मूलदास जी ,
  • संपादक : भगवद्दास शास्त्री ,
  • प्रकाशक : संत साहित्य संगम, सींथल , बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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