वजै नगारा भेर, गिगन में गाजरे।

गहरी होत अवाज, सुणै सोई साधरे।

संत कै ऊगा सूर, अंधारा जगत कै।

रिहां मूलदास घट अनंद, भया है भगत कै॥

स्रोत
  • पोथी : श्री मूलदास जी की अनुभव(अनभै) बाणी ,
  • सिरजक : संत मूलदास जी ,
  • संपादक : भगवद्दास शास्त्री ,
  • प्रकाशक : संत साहित्य संगम, सींथल , बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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