दोहा

ऊनाळौ धर ऊबळै, अरक तपै असमान।

रेवै किम थिर रूंखडा़ं, बिन व्रष्टि वीरांन॥

छंद - त्रिभंगी

अगनी बरसावै, जी जळ जावै, तन तिरसावै, दुख पावै|

उर नै उकळावै, कष्ट बधावै, मन मुरझावै, नित खावै|

आंधी उचकावै, धर धूजावै, रूंख गिरावै, अरडा़वै|

ऊनाळो आवै, लू लपकावै, ताप तपावै, कळपावै॥

भावै बरसाळा, मन मधुशाला, घूमे पाळा, कर हाळा।

तूटा नैमाळा, विरख निराळा,पड़्यां डाळा,धर जाळा॥

मिरगां मरणाळा,सूखा खाळा, नैही नाळा, तरसावै|

ऊनाळौ आवै, लू लपकावै, ताप तपावै, कळपावै॥

आंखडळ्या खुलते, सुपना बुणतै, झेराँ भगतै, झमकावै।

पैले परभातै, खीचड़ घातै, दही दबातै, दमकावै॥

मायड़ मुळकातै, धीज बधातै, जाय कमातै, डरड़ावै।

ऊनाळौ आवै, लू लपकावै, ताप तपावै, कळपावै॥

ऊनाळा आणा, निठ्या दाणा, जाय कमाणा जरकावै।

थल उडैज छाणा, आँख रूलाणा, झरे पसीणा, पसरावै॥

तापै जैसाणा, ओढ़न झीणा, जै सुल्ताणा, तन गावै।

ऊनाळौ आवै, लू लपकावै, ताप तपावै, कळपावै॥

घण बळैज मगरा, कूकै बकरा, ढूंढे चारा, खनकावै।

सोळै सिनगारा, तूटै तारा, देय सहारा, हरसावै॥

दळ न्यारा न्यारा, साथी सखरा, घूमै धोरा, धमकावै।

ऊनाळौ आवैै, लू लपकावै, ताप तपावै, कळपावै॥

साँगरिया खावै, खेताँ जावै,छाँग चरावै,नित फिरणा।

छायाड़ी भावै, राबड़ छावै, कथा सुणावै, मन करणा॥

कोटड़ी समावै,ताश रमावै, चा गटकावै, हरखावै।

ऊनाळौ आवै, लू लपकावै,ताप तपावै, कळपावै॥

भावै तालरियाँ, ठौकै गपियाँ, बातां अपियां, ऊँताला।

मुरधर डोकरियाँ, तपती थलियाँ, पानी पड़ियाँ, ऊनालाँ॥

बाजै झांखड़ियाँ, थोथा झड़ियाँ, धण घण चरियाँ, ठरकावै।

ऊनाळौ आवै , लू लपकावै, ताप तपावै,कळपावै॥

माथौ चकरावै, खेजड़ छाँवै, बायर आवै, मुळकावै।

झेराँ झपकावै, आणद गावै, हेत रखावै, हरखावै॥

झूँपड़ियां जावै, कड़ी बणावै, खींप छणावै, छमकावै।

ऊनालो आवै, लू लपकावै, ताप तपावै कळपावै॥

स्रोत
  • सिरजक : कमल सिंह सुल्ताना ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी