केतिन कैं बरजोर जमींन को, केतिन कैं बल वाँहं घनेरो।

केतिन कौं गुन की सकती, तपसी मन कूं सब कांम खरेरो।

मैं हूँ दीन दयानिधि हो तुम, दीन दयाल दया प्रद हेरो।

किंकर जांनि क्रपा कर शंकर, शंकर कूं सरनौं शिव तेरो॥

ग्यान नहीं कछु ध्यान तनूंसो, अमांन नहीं सब भाँति तजेरो।

स्वारथे (हि) शरीर कियौ, परमारथ को लगाव घनेरो।

चूक अनेकन चित्त धरो, हर शंकट बेग हरो प्रभु मेरो।

किंकर जांनि क्रपा कर शंकर, शंकर कूं सरनौं शिव तेरो॥

वारहिंवार पुकार करूँ, शंकर सुनो वचनारत मेरो।

देवन दुख निवार दियो हरि, पांन हलाहल कंठ वसेरो।

(बिन) वाहसु म्हेर तनी, दुख दारिद जांन (अपरा) परेरो।

किंकर जांनि क्रपा कर शंकर, शंकर कूं सरनौं शिव तेरो॥

आस तुही कैलासपती, विश्वास यही निसवासर केरो।

धरि हिये पन पारि प्रभु, सो विचार रिधू करनारस वेरो।

कांर करार निहार के नाथ, सनाथ की बेर कूं दृष्टि उधेरो।

किंकर जांनि क्रपाकर शंकर, शंकर कूं सरनौं शिव तेरो॥

विश्वबिलास प्रकाश तुही, निजदास की त्राश कूं दूर करेरो।

जारहि छार कियौ छिन येक मैं, कोपि कै तीसरौ नैंन उधेरो।

यौं लखिकै रति को पतिहीन सो, दीनउ अभै बरदांन सबेरो।

किंकर जांनि क्रपा कर शंकर, शंकर कूं सरनौ शिव तेरो॥

मो मतिमन्द गुनिन्द कहै जस, सारद आदि अगाध हेरो।

ध्याँन धरै तव शेष सुरेश, रमेश प्रजेश को काम खरेरो।

सो विध बेगी विचारि कै चारु, दयापन को पथ चेत सवेरो।

किंकर जांनि क्रपा कर शंकर, शंकर कूं सरनौ शिव तेरो॥

स्रोत
  • पोथी : भीम विलास ,
  • सिरजक : शंकर राव ,
  • संपादक : महावीर प्रसाद शर्मा ,
  • प्रकाशक : लोकभाषा प्रकाशन, कोटपूतली,जयपुर।
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