कोई साहपुरै कोई डीडवाणै, कोई नग्र नराण कूं जावता है।

कोई रायण टूंकड़ै रात रहै, कोई खीच खैड़ापै में खावता है।

कोई पंथ की पोल जाय धस्या, सब रात मंजीरां में गावता है।

कोई चाडी की फाडी में जाय फस्या, पर ब्रहम का भेद पावता है॥

स्रोत
  • पोथी : प्राचीन राजस्थानी साहित्य संग्रह संस्थान दासोड़ी रै संग्रह सूं ,
  • सिरजक : सांईदीन दरवेश
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