पंकज से पद हीर कनी रद, मीन से नैन हैं संतन सो चित।
पीव पतिव्रत आधिन व्याधि न, हंस गती अबलानि में भूषित॥
काल हू पै बल ब्रह्म मनोव्रत, माया को फैल विरंचि हु पै मति।
व्योम बिना गति श्रेष्ठ सदागति, फूल तैं फोरि हैं भारि गिरी गति॥