लघु क्रोध अणूं मन दीरघ मेरू, हरी कटि कुंभ करी कुच है तन।

जुग भौंह धनु थिर दीपक नासिका, कंज मुखी चकरी हरि को मन॥

कुच कंचन किंदुक लाल सिंघारे, महागुरु लाज है वाण से लोयन।

कर कंकण मुद्रिका कुंडल राधे के, मंडल ओपमा आकृति गन॥

स्रोत
  • पोथी : पाण्डव यशेन्दु चन्द्रिका ,
  • सिरजक : स्वामी स्वरूपदास देथा ,
  • संपादक : चन्द्र प्रकाश देवल ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादमी, नई दिल्ली। ,
  • संस्करण : तृतीय