नमो गुरुदेव दयाल दया करि, ज्ञान की चाल बताय कह्यो घर हेरो।
काहे को तीर्थ जायर खेद करे तूं, काहे को काशी मथुरा बास बसेरो।
अड़सठ तीर्थ है तन मांहि जू, बाहर भरमे दु:ख घनेरो।
जन आतम गुरुदेव मिल्या बिन,भ्रम न भाजै अधिक अंधेरो॥