भूसुर शाप के ब्याज तैं कृष्ण कियो जदुवंश को नाश विचार कै।

शीख लै कृष्ण की वीर धनंजय कीनौ पयान जदूत्रिय लार कै।

लूटि गई त्रिय आप मर्यो चहै व्यास की शीख तैं प्रान कौं धार कै।

भ्रात ये जाइ सुनाइ विराग भो वर्ष छतीस को राज विसार कै॥

स्रोत
  • पोथी : पाण्डव यशेन्दु चन्द्रिका ,
  • सिरजक : स्वामी स्वरूपदास देथा ,
  • संपादक : चन्द्र प्रकाश देवल ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादमी, नई दिल्ली। ,
  • संस्करण : तृतीय