अंध के धंध में फंद रया, सिरमांतसैदाना घुरता है।

सोबत संतन की नौह करी, मांबत माहै मन धरता है।

ग्रभ वास के कौल वो भूल गयो, बेईमान का काम करता है।

सांई दीन फकीर साहब कहै, साहिब सेती क्यूं डरता है॥

स्रोत
  • पोथी : प्राचीन राजस्थानी साहित्य संग्रह संस्थान दासोड़ी रै संग्रह सूं ,
  • सिरजक : सांईदीन दरवेश
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