ग्राह ग्रहयो बहु काल वह्यो बल हीन, भयौ जल थाह पायौ।

पूत प्रिया परिवारन प्रीतम, प्रीति छुटी भयौ देह परायौ।

स्याम सुजान हकार सुन्यों, निजनाम मंतगरि कारलौं नायौ।

आनि अचान कहीं इहिं बीच, छुटे नहिं प्रान गजेंद छुड़ायौ॥

स्रोत
  • पोथी : नरहरिदास बारहठ ,
  • सिरजक : नरहरिदास बारहठ ,
  • संपादक : सद्दीक मोहम्मद ,
  • प्रकाशक : महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश, जोधपुर। ,
  • संस्करण : प्रथम