दरसन परसन सनांन जोई करै जप ध्यांन।

नांव सुनै मुख आंन गांन कर गोईयौ।

सातू विध मोख देनी निसैनी सरगलोक।

ऐसी भागीरथी ताहि ध्यांन कर ध्याईयै॥

हरि के चरन लसी सिव के जटा तै धसी।

ब्रह्म कमंडळ वसी तासों चित्त लोईयै।

गंगाजी के नीर की घुर नीर के निकट कीच।

रंचक ही बीच जो कदाच मीच पाईयै॥

स्रोत
  • पोथी : गज उद्धार ,
  • सिरजक : महाराजा अजीतसिंह ,
  • संपादक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी शोध-संस्थान चौपासनी, जोधपुर।