अंग नवधा भक्ति के जा पर दशधा सार।

जै दशधा प्रापति नहीं तो सबही जांण असार।

तो सब ही जांण असार सार बिन कर्तब फीको।

देखो हिंय बिचार नाम नवधा शिर टीको।

रामचरण भज राम कूं धार्या बूढ इकतार।

नव अंग नवधा भक्ति के जां पर दशधा सार॥

स्रोत
  • पोथी : स्वामी रामचरण : जीवनी एवं कृतियों का अध्ययन (भक्ति रसायन अंग से उद्धृत) ,
  • सिरजक : स्वामी रामचरण ,
  • संपादक : माधवप्रसाद पाण्डेय ,
  • प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग ,
  • संस्करण : प्रथम