ससुर नहीं कोइ सास, अन्ध सभा न्रप अंध री।
होणहार उपहास, देखौ भीखम द्रोण रौ॥
भावार्थ:- अन्धे राजा धृतराष्ट्र की यह सभा भी अन्धी ही है, यहाँ न कोई सास है, न ससुर। देखो, होनहार की बात है, आज भीष्म और द्रोण का भी उपहास हो रहा है।