‘बड़कै डाढ वराह, कड़कै पीठ कमट्ठ री।

धड़कै नाग धराह, वाघ चढै जद वीसहथ॥

करनल किनियांणीह, धणियाणी जंगळ—धरा।

आळस मत आणीह, वीसहथी लाजै विड़द॥

विखमी आई वार, नै ऊपर करस्यो नहीं।

सरणाई साधार, कुण जग कहसी, करनला॥

सुणियां साद सतेज, आई, आगल आवता।

जगदंब, अब क्यूं जेज, करी इती तैं करनला॥

देवी देसाणेह, धर बीकाणै तूं धणी।

जोगण जोधाणेह, मानीजै मेहा—सधू॥

थळवट हेलो थाय, आता वेगा, ईसरी।

मोरी वरियां माय, बूढ़ा हुयगा, वीसहथ॥

व्है सिंघ होफरड़ीह, पतसाहां परचा दिया।

डरपी डोकरड़ीह, मा, आती मेवात में॥

व्है सिंघ होफरड़ीह, पतसाहां परचा दिया।

डग भर डोकरड़ीह, मा आई मेवात में॥

स्रोत
  • पोथी : करणीजी री स्तुति ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया
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