पग पग भम्या पहाड,धरा छांड राख्यो धरम।

(ईंसू) महाराणा’र मेवाङ, हिरदे बसिया हिन्द रै॥

भयंकर मुसीबतों में दुःख सहते हुए मेवाड़ के महाराणा नंगे पैर पहाडों में घुमे ,घास की रोटियां खाई फिर भी उन्होंने हमेशा धर्म की रक्षा की। मातृभूमि के गौरव के लिए वे कभी कितनी ही बड़ी मुसीबत से विचलित नहीं हुए उन्होंने हमेशा मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह किया है वे कभी किसी के आगे नहीं झुके। इसीलिए आज मेवाड़ के महाराणा हिंदुस्तान के जन जन के हृदय में बसे है।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी साहित्य सुजस ,
  • सिरजक : केसरी सिंह बारहठ ,
  • प्रकाशक : राजस्थान राज्य पाठ्य पुस्तक मंडल, जयपुर।