घल खींच्यां घमसाण, देवल नै गायां दई।
बैठो कमध विमाण, कीधां साथै काळमी॥
जायल खीची जोर, कोळमंढ राजै कमध।
ते नित बदळै तोर, केसर घोड़ी कारणै॥
जद कहियो जिनराव, केसर ले पाबू कमध।
देस्यूं इसड़ो दाव, घण थट गायां घेरस्यूं॥
लीधा सांवळ लार, जंगी चंद डांभै जिसा।
देवल रै दरबार, भाल्याळौ पूगो भला॥
नामी सीस नमाय, देवल नैं पाबू दखै।
बाई, मूझ बताय, कसी—क घोड़ी काळवीं॥
वीरा, बूझ न बात, धांधल रा मोटा धणी।
घलसी गायां घात, जद—कद खीची जींद रो॥
पाणी पवन प्रमाण, धर अम्बर हिन्दू धरम।
आ धांधल री आण, सिर देस्यूं गायां सटै॥
वीरा, दीजै बांह, सातउ बीसी सांवळा।
नटजे उण दिन नांह, घर डूबै, गायां घिरै॥
धीरज मन में धार, से जुग आखै सांवळा।
आगल गायां आर, बाई, म्हे ऊजळ बणां॥
बाई, बिकराळीह, केसर मो काळी कनैं।
आई उताळीह, ताळी नंह बाजै त दिन॥
खैंग दुबागां खोल, काढ़ी बाहर काळमी।
‘बाप बाप’ मुख बोल, भाल्याळो चढियो भलां॥
ओ लिछमण औतार, सकत रूप केसर सजै।
आ घोड़ी असवार, आया कथ राखण अमर॥
सोढां रीत सवाय, साम्हेळै घोड़ा सजै।
बाई, मूझ बताय, कसी—क मलफै काळमी॥
मिलै न लीधां मोल, सकत पधारी सुरग सूं।
वीरा, धीरो बोल, उड लागै असमाण रै॥
जंगी सोढा जैत, ऊमरगढ़ ऊंचो अळग।
तोरण बंधै तैत, किण विध पूगै काळमी॥
छत्रधर धांधल छात, कमधज, सोच न कीजिये।
तोरण कती—क बात, तारा अम्बर तोड़वै॥
ध्रुवै नगारां ध्रीस, सातूं बीसी सांवळा।
सेहर भळकै सीस, पाबू चढियो परणवा॥
भळकै अम्बर भाण, भाण दुवो प्रथमी भळक।
जां दिन चढिया जान, देव विमाणां देखिया॥
दुवा न पूगै दौड़, सोढां रा घोड़ा सको।
तोरण लूंमां तोड़, केसर विलमी कांगरां॥
जलदी तोरण जाय, बाई, निरखो बींद नैं।
मोद मनां नह माय, भाभी यूं कहियो भलां॥
हथळेवो नर—लोक, पैसारो परलोक में।
सुख विलसण सुर—लोक, जान सहेतां जावस्यां॥
बाई, असुभ न बोल, के बातां इसड़ी करो।
कमधज सूं कर कोल, राज घणा दिन राखस्यां॥
संमळी रूप सजाय, कूकी दवेल कांगरै।
जायल गायां जाय, को पाबू चढस्यो करां॥
आछा बोल उजाळ, कळहळ सुणतां काळमी।
भालो लीधा भुजाळ, वणियो गायां वाहरू॥
आ फिर—फिर आडीह, कमधज नैं लाडी कहै।
छत्री, किम छाडीह, आधा फेरां ऊठियो॥
साळ्यां हंदो साथ, अरज करै छै आप नैं।
हथळेवा रो हाथ, जचियो पण रचियो नहीं॥
जेज हूंत कर जींद, तसवीरां लिखल्यां तुरत।
वळे ज इसड़ो बींद, ऊमरकोट न आवसी॥
गरदन मोटो गात, पेट दूंद छिटक्या पड़ै।
सोढी—वाळै साथ, तूं डांभा आजे त—दिन॥
बोल न इसड़ा बोल, आंटीला ठाकर अलल।
करस्यां सांचा कोल, पिंड गायां आगल पड़ै॥
कर में लीध कटार, पहली पेट प्रणाळियो।
धक अणियाळ दुधार, अंत ग्रीधण लीजो अबै॥
जड़ पेटी कस जोर, खैंग चढो हिरणांखुरै।
अब नंह पूगै ओर, कमध, हकालो काळमी॥
घल खींच्यां घमसाण, देवल नैं गायां दयी।
बैठो कमध विमांण, कीधां साथै काळमी॥
ऐ दूहा इकतीस, चारण पढवै चाव सूं।
विसवा मानो बीस, कमधजियो ऊपर करै॥