भूप अपछर मेळाह, रंग मांणण दोनूं रह्या।

वडकी सुभ वेळाह, नग पाबू सिध नीमियौ॥

अधपत वाळौ अंस, पड़ियौ अपछर पेट में।

तद लछमण अवतंस, रतन कुंवर पाबू रह्यो॥

फाल्गुनी उत्तरा फज़र, पाबू नांम प्रमांण।

कन्या रास जरूर कथ, जनम्यौ नवगुण जांण॥

सुपनां झड़ छायौह, अमरां मिळ आकास में।

पाल जनम पायौह। सुभवेळा धांधल सुतन॥

स्रोत
  • पोथी : पाबूप्रकास-महाकाव्य ,
  • सिरजक : मोडजी आशिया ,
  • संपादक : शंकर सिंह आशिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम