दुसट दाहणी विरद आगा लगे दाखजे,
है सदा सेवगां कसट हरणी।
थयो इळ जुगादू जाण थळवट—धणी,
कियो कळ नवादू प्रचो करणी॥
तूझ धिन कळा महाराज मेहा—तणी,
भलो दधि पाज सुजस भाखै।
साह री उबारी झाझ मेहा—सधू,
राज अलवर ज्युं ही सुकवि राखै॥
कळू सामंद नृप गाह रूपी कहर,
लहर अणपार तिण मांहि लागै।
मूकिया हाथ असमाण हूंता मही,
उठै कवि कूकिया मात आगै॥
वधारे आच जगदंब जिण बार में,
लखे दुख वरण नंह विलंब लाई।
थिरू रजकार सासण सरब सूथपै,
ऊथपै उथापण—हार आई॥