तोड़ देय ततकाळ, स्वारथ रिस्ता सांवठा।

बणियो वरख विसाळ, कूड़ कपट रो काळिया॥

खरी कमाई खोस, डाकीचाळो कर डसै।

रुळियारां रो रोस, कोजो है रे काळिया॥

गिण'र गरब गुमान, रुपियां आगळ रोळिया।

अपणौ साच इमान, काग उडावै काळिया॥

खूट गयी वा खाद, घर जिणसूं गरबीजता।

मिनखां री मरजाद, कींकर रैसी काळिया॥

वधियो व्याभिचार, माया कारण मुलक में

लोक हुया लाचार, कपटी साम्हीं काळिया॥

डाकी डकळीचूक, जैर फैलावै जगत में।

मोती माणस मूक, कीं नीं बोलै काळिया॥

जिणरी नहीं जबान, झट फुर जावै झपटतां

मिनखां हंदो मान, कीकर रैसी काळिया॥

फट कर दैवै पाप, डाकी किणसूं नीं डरै।

धाड़ा पाड़ै धाप, कळजुग मांही काळिया॥

बण विषधर बदमास, डाकीचाळो कर डसै।

वांरो की विसवास, कूड़ तणो रे काळिया॥

दिनकर जासी डूब, सच वाळो संसार में।

खैर मनासी खूब, कपटी हिळमिळ काळिया॥

मिट जासी जग मांण, आंख्यां पाणी आकरो।

पत वाळो परमाणु, कींकर देस्यां काळिया॥

लालच सूं ललचाय, काण गमावै कायदो।

लांपो देय लगाय, कूड़ बोलतां काळिया॥

कर कर कोजा कांड, घट घट में विष घोळ दै।

भरमावै नित भांड, काळै मन सूं काळिया॥

चवड़ै धाड़ै चोर, लूट मचावै लोक में।

परभातै री पौर, कोजा बोलै काळिया॥

लकड़ी छाया लूंख, अंग-अंग में ऊपजै।

रूप निखारै रूंख, कचनारी ज्यूं काळिया॥

फबै फूठरा फोग, आंटीला धर आकड़ा।

रती लागै रोग, कूमटियां रै काळिया॥

गांव-गळी रै ग्वाड़, ओप रही छै ओरणां।

जबरो वरख जुगाड़, कीरत हंदो काळिया॥

छाळ फूलड़ां संग, रूंखड़ला रळियावणा।

आपै अपणा अंग, काळ बगत में काळिया॥

तरुवर तारणहार, माणस हिव महकावणा।

तुरत होय'नै त्यार, काटै मत ना काळिया॥

कूमटिया अरु कैर, खींच चग्गा सह खेजड़ा।

बोरड़ियां रा बेर, कलप मरुधर काळिया॥

सौरम नै छिटकाव, मोहै मनड़ो मिनख रो।

बोरड़ियां रा बेर, कलप मरुधर काळिया॥

सौरम नै छिटकाव, मोहै मनड़ो मिनख रो।

सीतळ सीतळ छांव, कलप तणी है काळिया॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : महेन्द्रसिंह छायण ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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